चातरमा में बीमार हाथी की मौत पर सवालों के घेरे में वन विभाग, बार-बार विफल क्यों हो रही रेस्क्यू व्यवस्था?
छह हाथियों की मौत, फिर भी ठोस प्रबंधन नहीं, चांडिल वन क्षेत्र में वन्यजीव संरक्षण पर गंभीर संकट

चांडिल : सरायकेला-खरसावां जिले के चांडिल वन क्षेत्र अंतर्गत नीमडीह प्रखंड के चातरमा गांव में बीमार हाथी की इलाज के दौरान मौत ने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। बताया जा रहा है कि हाथी पिछले करीब डेढ़ महीने से अस्वस्थ था और शनिवार को दलदली खेत में फंस गया, जहां से वह खुद बाहर नहीं निकल सका। हालत बिगड़ने पर वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और डीएफओ, रेंजर, वनकर्मियों तथा पशु चिकित्सकों ने उपचार शुरू किया। गुजरात से आई विशेषज्ञ टीम की मदद भी ली गई लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद रविवार तड़के हाथी ने दम तोड़ दिया। वन विभाग की मौजूदगी में पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार किया गया जबकि ग्रामीणों ने परंपरा के अनुसार पूजा-अर्चना कर हाथी को अंतिम विदाई दी। यह इलाका हाथी-प्रभावित क्षेत्र है जहां मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं लगातार होती रही हैं। इसके बावजूद समय पर प्रभावी प्रबंधन और वैज्ञानिक हस्तक्षेप की कमी साफ नजर आती है। गौरतलब है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत वन विभाग पर वन्यजीवों की सुरक्षा, समयबद्ध उपचार, रेस्क्यू और आवास संरक्षण की जिम्मेदारी तय है। बावजूद इसके, ईचागढ़, कुकड़ू और नीमडीह क्षेत्रों में बीते दो वर्षों में छह हाथियों की मौत और पिछले कुछ वर्षों में दर्जन भर से अधिक हाथियों के मरने की घटनाएं विभागीय लापरवाही की ओर इशारा करती हैं। रेंजर शशि प्रकाश रंजन ने बताया कि ढाई महीने से हाथी को बचाने के प्रयास किए जा रहे थे और वह घायल अवस्था में पश्चिम बंगाल से आया था। लेकिन सवाल यह है कि लगातार बीमारियों, दलदली इलाकों और मानव-हाथी संघर्ष के बावजूद स्थायी रेस्क्यू प्रोटोकॉल, मोबाइल वेटरनरी यूनिट और सुरक्षित कॉरिडोर क्यों नहीं बनाए गए? लगातार हो रही मौतों ने वन विभाग के दावों की पोल खोल दी है। अब जरूरत है कि राज्य सरकार और वन विभाग जवाबदेही तय करें, वैज्ञानिक प्रबंधन लागू करें और कानून के अनुरूप ठोस कदम उठाएं ताकि हाथियों की जान यूं ही न जाती रहे।