सरायकेला में चैत्र पर्व पर राजनीति का साया, छऊ नृत्य और कलाकारों की अस्मिता पर मंडरा रहा संकट
अभी तक किसी भी स्थानीय मीडिया को न आमंत्रण भेजा गया है और न ही प्रेस वार्ता आयोजित की गई है।

सरायकेला : एक ओर जहां सरायकेला में चैत्र पर्व का शुभारंभ हो चुका है वहीं दूसरी ओर इस सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन पर राजनीतिक रंग चढ़ता जा रहा है। राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र जो वर्षों से यहां की संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक रहा है अब धीरे-धीरे राजनीतिक द्वंद्व का अखाड़ा बनता नजर आ रहा है।
भाजपा बनाम झामुमो, कलाकारों में भी बंटवारा
केंद्र से जुड़े कलाकार अब भाजपा और झामुमो जैसे राजनीतिक दलों के खेमे में बंटे दिख रहे हैं। यह स्थिति स्थानीय संस्कृति प्रेमियों और छऊ कलाकारों के लिए चिंता का विषय बन गई है। क्योंकि यह वही छऊ नृत्य है जिसे यूनेस्को ने 'इनटेंजिबल कल्चरल हेरीटेज' (अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर) की सूची में शामिल किया है।
कला केंद्र के पदाधिकारी भी राजनीतिक रंग में रंगे
राजकीय छऊ कला केंद्र से जुड़े कई पदाधिकारी अब खुले रूप में राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न हैं। इससे छऊ नृत्य जैसी पारंपरिक कला के संचालन और निष्पक्ष प्रस्तुति पर सवाल उठने लगे हैं।
प्रभारी एसडीओ का खंडन
इस पूरे मामले में सरायकेला अनुमंडल की प्रभारी पदाधिकारी निवेदिता नियति ने किसी प्रकार के राजनीतिक प्रभाव से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम इतने कम समय में आयोजित हो रहे हैं कि समुचित तैयारी में विलंब हो रहा है।
मीडिया को नहीं भेजा गया आमंत्रण, प्रचार-प्रसार अधर में
हर वर्ष चैत्र पर्व को सफल बनाने हेतु एक मीडिया कमेटी बनाई जाती थी और प्रेस व पत्रकारों को आमंत्रण भेजा जाता था। लेकिन इस वर्ष चैत्र पर्व के प्रचार-प्रसार की पूरी व्यवस्था गड़बड़ाई हुई नजर आ रही है। अभी तक किसी भी स्थानीय मीडिया को न आमंत्रण भेजा गया है और न ही प्रेस वार्ता आयोजित की गई है।
वरिष्ठ कलाकारों को नजरअंदाज करने का आरोप
चैत्र पर्व से जुड़ा धार्मिक अनुष्ठान प्रारंभ हुए दो दिन हो चुके हैं परंतु आज तक उन वरिष्ठ कलाकारों को न तो आमंत्रित किया गया है और न ही उनके अनुभव व योगदान को सम्मान मिला है जो वर्षों से इस पर्व की पहचान रहे हैं।
संस्कृति बनाम सियासत : भविष्य पर खतरा
यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि जहां एक ओर छऊ नृत्य विश्व पटल पर सरायकेला की पहचान बना चुका है वहीं अब इसकी आंतरिक राजनीति के कारण यह सांस्कृतिक विरासत संकट में नजर आ रही है। यदि समय रहते इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो छऊ कला की निष्पक्षता और इसकी गरिमा पर आंच आ सकती है।
चैत्र पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सरायकेला की आत्मा है। इस पर्व और इससे जुड़ी छऊ कला को राजनीति से दूर रखते हुए उसकी पवित्रता और गरिमा को बनाए रखना आज समय की सबसे बड़ी मांग है। प्रशासन और समाज के जिम्मेदार वर्गों को मिलकर इस ओर त्वरित और निष्पक्ष कदम उठाने की आवश्यकता है।