दलमा की तराई में पर्यटन की अपार संभावना, पहाड़िया टोला के आदिवासी समुदाय ने कॉटेज की उठाई मांग
जंगल पर निर्भर जीवन, झरनों और वन्यजीवों के बीच बसे गांव को अब भी इंतज़ार, पर्यटन विकास से बदल सकती है तस्वीर

चांडिल : सरायकेला-खरसावां जिले से सटे बोड़ाम थाना क्षेत्र के पहाड़िया टोला (राजस्व गांव खोकरो) का इलाका प्राकृतिक संपदा से भरपूर होने के बावजूद विकास की मुख्यधारा से अब तक दूर है। दलमा वन्यजीव अभयारण्य की तराई में स्थित यह गांव घने जंगल, आकर्षक झरनों और समृद्ध जैव-विविधता के लिए जाना जाता है। यहां रहने वाले सबर, पहाड़िया और खड़िया समुदाय के लोग आज भी अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह जंगल पर निर्भर हैं। ग्रामीण सूखी लकड़ी, पत्ता, दातुन, कंद-मूल, शाल-एंब-घोंग पत्ते और बांस से झाड़ू बनाकर बाजार में बेचते हैं। गांव से महज एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्राकृतिक झरना, साथ ही हिरण, भालू और हाथी जैसे वन्यजीव इस क्षेत्र को पर्यटन के लिहाज से बेहद आकर्षक बनाते हैं। बावजूद इसके यहां पर्यटकों के ठहरने के लिए कोई बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि वन एवं पर्यावरण विभाग इस क्षेत्र में इको-टूरिज्म के तहत कॉटेज स्थापित करे तो न सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि ग्रामीणों को स्थायी रोजगार भी मिल सकेगा। फिलहाल गांव के बच्चे और युवा अनौपचारिक रूप से पर्यटकों को गाइड बनकर जंगल और झरनों की सैर कराते हैं लेकिन सुविधाओं के अभाव में पर्यटकों की संख्या सीमित रह जाती है। पंचायत प्रतिनिधि और सोशल मीडिया से जुड़े संजय गोराई का कहना है कि उचित आवास और आधारभूत संरचना विकसित होने पर यह गांव रोजगार का केंद्र बन सकता है और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक प्रमुख गंतव्य के रूप में उभर सकता है। जिला प्रशासन ने प्रस्ताव पर विचार का आश्वासन तो दिया है लेकिन अब तक कोई ठोस योजना सामने नहीं आई है। ग्रामीणों को उम्मीद है कि सरकार और प्रशासन प्राकृतिक सौंदर्य के संरक्षण के साथ-साथ आजीविका के नए अवसर पैदा करने की दिशा में जल्द ठोस कदम उठाएंगे।