भक्ति और सरलता की मिसाल, कैसे पंच पा मठ बना भगवान श्री जगन्नाथ का कृपास्थल
सरायकेला से जगदीश साव की विशेष रिपोर्ट

सरायकेला-खरसावां : भगवान श्री जगन्नाथ की भक्ति में लीन एक अनाथ बालक की मासूम श्रद्धा और सेवा भाव ने न केवल दिव्य दर्शन कराए बल्कि एक मठ का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज करवा दिया। यह कथा है पंच पा मठ की जहाँ भगवान जगन्नाथ और देवी लक्ष्मी ने एक सच्चे भक्त के हाथों से बना भोग ग्रहण किया।
कहानी की शुरुआत
जगन्नाथ जी के पाँच मठों में से एक के प्रबंधक जब अनाज इकट्ठा करने गाँव पहुँचे तो एक अनाथ लड़के को गाँव के मुखिया ने मठ में रखने का आग्रह किया। लड़के की सादगी और आत्मनिर्भरता से प्रभावित होकर मठ के महंत ने उसे स्थान दिया।
नाम पड़ा पंच पा
लड़का बोला मैं सुबह और रात में पाँच-पाँच पाव चावल ही खाऊँगा। यह सुनकर महंत चौंके पर उसकी सरलता से प्रसन्न होकर उसे मठ में रहने दिया गया। धीरे-धीरे उसका नाम सबकी जुबान पर पाँच पा हो गया।
भगवान हुए स्वयं प्रकट
एकादशी के दिन जब मठ में अन्न ग्रहण वर्जित था तब पाँच पा ने प्रभु को पुकारा हे जगन्नाथ, आओ! चावल तैयार है.. भगवान श्री जगन्नाथ स्वयं प्रकट हुए और बालक के प्रेम से अभिभूत होकर उसका भोग स्वीकार किया। अगले एकादशी पर बालक ने अधिक चावल पकाया और जब जगन्नाथ माँ लक्ष्मी के साथ आए तब उसने फिर भी वही भोलापन दिखाया, मैं पाँच पाव खाऊँगा बाकी तुम दोनों बाँट लो।
महंत की आँखें खुलीं
तीसरी एकादशी पर महंत को जिज्ञासा हुई बालक के पकाए चावल कौन खाता है? जब उन्होंने छिपकर देखा तो उनके नेत्र भर आए। उन्होंने देखा कि जगन्नाथ, लक्ष्मी और स्वयं बलभद्र जी बालक के हाथ से पकाया प्रसाद खा रहे हैं।
मठ को मिला नया नाम
महंत ने बालक को गले लगाते हुए घोषणा की कि आज से यह मठ पंच पा मठ के नाम से जाना जाएगा। यह तुम्हारी भक्ति और भगवान की कृपा का जीवंत उदाहरण है।
यह कथा न केवल भक्ति की शक्ति को दर्शाती है बल्कि यह भी बताती है कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए वैभव नहीं बल्कि सच्ची श्रद्धा और सरल हृदय चाहिए। जहाँ सच्ची भक्ति हो वहाँ स्वयं भगवान सेवा लेने चले आते हैं। पंच पा मठ इसका अद्भुत प्रमाण है।