राम मंदिर अभियान के भूले बिसरे नायक: ठाकुर गुरुदत्त सिंह
अशोक सिंघल ने उन्हें 'भारत का पहला कारसेवक' कहा था

Report By मनोज कुमार पाठक
-फैजाबाद के तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट जिन्होंने 1949 में अयोध्या राम मंदिर को पुनः प्राप्त करने में प्रमुख भूमिका निभाई
मंदिर आंदोलन को सफल बनाने में दो किस्म का नेतृत्व प्रभावी था। एक ओर रामचंद्रदास परमहंस एवं अशोक सिंहल जैसों का फलक पर प्रस्तुत होने वाला नेतृत्व था, तो दूसरी ओर नेपथ्य में रहकर सर्वोच्च प्रदर्शन करने वाले वह लोग थे, जो भले ही नेपथ्य में थे, पर मंदिर आन्दोलन को धारदार बनाने में उनका योगदान अप्रतिम था। ऐसे नायकों में एक नाम ठाकुर गुरुदत्त सिंह का भी है।
यह बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि तत्कालीन फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह और एक आईसीएस अधिकारी केके नायर ने उन घटनाओं के क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिनके कारण बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ - एक ऐसी घटना जिसने भारतीय राजनीति का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया। "हिंदू हृदय सम्राट" स्वर्गीय अशोक सिंघल ने उन्हें भारत का पहला कारसेवक कहा था|
निर्मोही अखाड़े के संतों के बाद, शायद सिंघल पहले प्रमुख हिंदू नेता हैं जिन्होंने स्वीकार किया कि ठाकुर गुरुदत्त सिंह के योगदान ने राम जन्मभूमि के इतिहास की दिशा बदल दी और राम जन्म भूमि पर नियंत्रण के लिए हिंदू संघर्ष की समयरेखा में एक मील का पत्थर स्थापित किया।
मंदिर आंदोलन अंजाम तक पहुंचने की बेला में ठाकुर गुरुदत्त सिंह का स्मरण रोमांचित करने वाला है। 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे में रामलला के प्राकट्य के समय वे फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट थे। उस समय जिलाधिकारी केके नायर छुट्टी पर थे और जिले का प्रभार गुरुदत्त सिंह पर ही था। प्राकट्य के बाद के दिन से ही गहमा-गहमी शुरू हो गयी थी। केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा शासन-प्रशासन पर मूर्ति हटाने का दबाव बढ़ने लगा। अंतत: तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से लेकर मुख्यमंत्री गोविंदवल्लभ पंत की ओर से गुरुदत्त सिंह को मूर्ति हटाने का आदेश दिया गया। गुरुदत्त सिंह ने जिम्मेदार एवं संवेदनशील अधिकारी होने का परिचय दिया। वे यह भांप गये थे कि रामलला की मूर्ति हटाना आसान नहीं होगा। रामलला के प्राकट्य की खुशी में उस वक्त हजारों की संख्या में रामभक्त रामनगरी में जमा थे। ऐसे में रामलला की मूर्ति हटाना टकराव को दावत देने जैसा था। यदि गुरुदत्त सिंह की तरह का सूझ-बूझ वाला अधिकारी न होता, तो मंदिर आंदोलन उसी समय खून खराबे की हद तक पहुंच जाता। इस काम के लिए सरकार द्वारा उन्हें पुरस्कृत करने की बजाय दंड का सामना करना पड़ा और पद त्याग करना पड़ा। उनके इस योगदान के पश्चात भाजपा के पूर्ववर्ती जनसंघ ने उन्हें समुचित सम्मान दिया।
भारतीय राजनीति के शलाका पुरुष एवं उस समय जनसंघ के शीर्ष नेता अटलबिहारी वाजपेयी से गुरुदत्त सिंह के करीबी संबंध रहे। देश की आजादी के बाद के दशक के मध्य वे सिटी बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। सिविल लाइंस स्थित उनका आवास कालांतर में रामजन्मभूमि आंदोलन का शुरुआती केंद्र बना। आंदोलन से जुड़े बड़े नेताओं का पहला पड़ाव रामभवन ही होता था।
ठाकुर गुरुदत्त सिंह के पोते शक्ति सिंह के अनुसार रामलला के पक्ष में खड़े होने का दादाजी को खामियाजा भुगतना पड़ा, सरकार ने उनकी नौकरी छीन ली इतना ही नहीं, उन्हें उनकी पत्नी और बच्चों के साथ सर्दियों के दौरान आधी रात को उनके सरकारी आवास से बाहर निकाल दिया गया था। उन्होंने वकील भगवती प्रसाद सिंह के यहाँ शरण ली और लंबे समय तक यहीं रहे। इन वर्षों के दौरान, सरकार अलग-अलग बहानों से उनकी पेंशन में बाधा डालती रही। हालाँकि, वित्तीय बाधाएँ उन्हें देश की सेवा करने और हिंदुत्व के सिद्धांतों का पालन करने से कभी नहीं रोक पाईं।