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बॉसटोली गांव विकास से अछूता, मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे पीवीटीजी (आदिम जनजातीय) परिवार

रिपोर्ट: शनिरंजन 16 दिन पहलेझारखण्ड

विडंबना: खुले में शौच रोकने की अपील करने वाले खुद मजबूर, विद्यालय में भी पानी की भारी किल्लत, दूषित पानी पीने को मजबूर हैं ग्रामीण, भवन जर्जर, दुर्घटना की आशंका

बॉसटोली गांव विकास से अछूता, मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे पीवीटीजी (आदिम जनजातीय) परिवार

चैनपुर : प्रखंड अंतर्गत जनावल पंचायत के पीवीटीजी (अत्यंत पिछड़ी जनजाति) बहुल ग्राम बॉसटोली आज भी विकास की बुनियादी रोशनी से कोसों दूर है। लगभग 45 घरों में 252 लोग इस गांव में निवास करते हैं लेकिन उन्हें पेयजल, शौचालय, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं हैं। गांववाले चूंआ और दाढ़ी के दूषित जल स्रोतों से पानी पीने को विवश हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि जल जीवन मिशन के तहत गांव में चार जलमीनार लगाए तो गए हैं लेकिन वे सिर्फ दिखावे के लिए हैं हाथी के दांत की तरह जो केवल देखने के लिए हैं इस्तेमाल के लायक नहीं। गांव स्थित नव प्राथमिक विद्यालय बॉसटोली के लिए भी हालात अच्छे नहीं हैं। स्कूल में खाना पकाने के लिए आधा किलोमीटर दूर पहाड़ के नीचे से पानी लाना पड़ता है। विद्यालय में शौचालय सालों से जर्जर हालत में पड़ा है जिसके कारण छात्र-छात्राएं खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। स्थानीय ग्रामीण बीरेंद्र मुंडा ने बताया कि यह विद्यालय साल 2009 में बना था लेकिन अब बरामदे का छत गिरने की कगार पर है जिससे कभी भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है। स्कूल की मरम्मत की सख्त आवश्यकता है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इसी स्कूल के शिक्षक और बच्चे ही गांव में खुले में शौच के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाते हैं रैली निकालते हैं लेकिन स्वयं ही शौचालय नहीं होने के कारण खुले में जाने को मजबूर हैं।

विकास के वादे सिर्फ वोट तक सीमित

ग्रामीणों ने बताया कि नेता और जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के समय गांव आते हैं और फिर विकास से उनका कोई वास्ता नहीं रहता। बार-बार शिकायतों के बावजूद प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं। बॉसटोली गांव की स्थिति झारखंड के आदिवासी और पीवीटीजी बहुल इलाकों में विकास की असमानता की एक तस्वीर पेश करती है जो यह सवाल उठाती है कि क्या वास्तव में हर घर तक सुविधाएं पहुंच पाई हैं?

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