चंपई सोरेन का सरकार पर सीधा हमला, कहा: हुल दिवस पर देश भर से जुटेंगे लाखों अदिबासी, रोक सको तो रोक लो
भोगनाडीह में आदिवासी आयोजनों पर सरकार लगा रही अघोषित पाबंदी, 170 साल बाद फिर होगा हुल : चंपई सोरेन

गम्हरिया : सरायकेला-खरसावां जिले के महुलडीह स्थित अपने निजी कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व मुख्यमंत्री सह सरायकेला विधायक चंपई सोरेन ने साहिबगंज जिले के भोगनाडीह में आदिवासी समाज के ऐतिहासिक आयोजनों को लेकर राज्य सरकार और जिला प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि 170 वर्ष पूर्व जिन वीर सिदो-कान्हू ने अंग्रेजों के खिलाफ हूल विद्रोह किया आज उसी भूमि पर उनके वंशज लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित किए जा रहे हैं। चंपई सोरेन ने कहा कि जून 2025 में हूल दिवस पर वीर सिदो-कान्हू हूल फाउंडेशन द्वारा प्रस्तावित गैर-राजनीतिक कार्यक्रम को प्रशासन ने जानबूझकर अनुमति नहीं दी। ग्रामसभा की स्वीकृति के बावजूद आधी रात में पंडाल तोड़ा गया, पार्क का ताला तोड़ा गया और ग्रामीणों पर लाठीचार्ज व आंसू गैस का प्रयोग किया गया। बाद में पूरे घटनाक्रम का दोष वंशजों और ग्रामीणों पर मढ़ते हुए जेल भेजा गया। उन्होंने आरोप लगाया कि अब 22 दिसंबर को प्रस्तावित संथाल परगना स्थापना दिवस कार्यक्रम को भी केवल इसलिए रोका जा रहा है क्योंकि उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। चंपई सोरेन ने कहा कि प्रशासन ने दर्जनों मजिस्ट्रेट तैनात कर अव्यावहारिक शर्तें लगाकर आयोजन को विफल करने की साजिश रची है। आयोजकों से स्वयं ट्रैफिक, नशा मुक्ति और कानून-व्यवस्था संभालने जैसी शर्तें थोपी जा रही हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब झारखंड और देश के अन्य हिस्सों में आदिवासी कार्यक्रम शांतिपूर्वक होते हैं तो साहिबगंज में ही समस्या क्यों? चंपई सोरेन ने इसे अपने खिलाफ अघोषित प्रतिबंध करार देते हुए सरकार से स्पष्ट घोषणा की मांग की। अंत में उन्होंने चेतावनी दी कि 30 जून को हूल दिवस पर झारखंड, बंगाल, बिहार और ओडिशा से लाखों आदिवासी भोगनाडीह पहुंचेंगे। अगर सरकार में ताकत है तो हमें रोक कर दिखाए, कहते हुए उन्होंने आंदोलन की खुली चुनौती दी।