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दलमा इको सेंसेटिव जोन में जिम्मेदारों की मिलीभगत से दर्जनों अवैध क्रशर और पत्थर खदान संचालित

रिपोर्ट: मनीष 122 दिन पहलेझारखण्ड

पर्यावरणीय क्षति के साथ साथ राजस्व का भी हो रहा भारी नुकसान

दलमा इको सेंसेटिव जोन में जिम्मेदारों की मिलीभगत से दर्जनों अवैध क्रशर और पत्थर खदान संचालित

चांडिल : विभिन्न प्रजाति के वन्य प्राणियों के लिए अनुकूल जगह दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के अस्तित्व पर इन दिनों संकट गहराने लगा है। बताया जाता है कि क्षेत्र के पत्थर माफिया पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर वन्य प्राणी सहित लोगों के जीवन से खेल रहे हैं.

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विगत कई माह से पत्थर माफियाओं द्वारा दलमा के तराई पर स्थित गांव सहित आसपास के क्षेत्रों में अवैध खनन कर जगह-जगह सैंकड़ों फीट गड्ढा कर वैसे ही छोड़ दिया गया है, समतल भूमी पर अवैध खनन के पश्चात गड्ढा कर छोड़ देने की वजह से यहां के किसान भाई के लिए कृषि कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही है।

वहीं दलमा पहाड़ पर भी दिनों दिन संकट गहराते जा रहा है। तय अनुमान के हिसाब से खेती-बाड़ी न होने के कारण यहां के गरीब गुरबा तबके के लोग अपने स्वास्थ्य के साथ समझोता कर पत्थर खादानों और क्रशरों में मजदूरी करने को विवश हैं। ज्ञात हो कि क्रशर व खदानों में काम करने वाले अधिकांश मजदूरों की टीबी, कैंसर, दमे जैसे गंभीर बीमारी के चपेट में आते ही बेहतर ईलाज के अभाव में असमय मौत हो जाती है.

इन सभी विषयों पर जानकारी होते हुए भी क्षेत्र के गरीब पत्थर खदानों में काम करने को लाचार है, क्योंकि बड़े बड़े क्रसर संचालक और अवैध पत्थर खनन माफियाओं के मिलीभगत से चौतरफा पर्यावरण को क्षति पहुंचने से कृषि लायक भूमि की किल्लत हो गई है। एक ओर जहां इको सेंसेटिव जोन क्षेत्र में जहां वन विभाग द्वारा वैध व अवैध क्रशर मशीनों के अलावा पत्थर खनन कार्य को भी बंद दिखाया जाता है, वहीं चांडिल प्रखण्ड के शहरबेड़ा, चिलगु, भुईयांडीह, धादकिडीह, हाड़ूडीह, भादुडीह आदि गांवों के अलग अलग जगहों पर दर्जनों क्रेसर लगे हैं और इको सेंसेटिव जोन स्थित एदेलबेड़ा, चाकुलिया, चिलगु आदि जगहों से माफियाओं द्वारा अवैध तरीके से पत्थरों का खनन कर क्रशरों में आपूर्ति की जाती है।

क्रशर के साथ-साथ सैकड़ों फीट गहरे कई पत्थर खादान बन चुके हैं जहां भारी पैमाने पर पत्थरों के अवैध खनन होते हैं, जो वन्य पशुओं के लिए घातक बनता जा रहा है। वहीं सरकार को भी भारी भरकम राजस्व का चूना अवैध पत्थर कारोबारियों और क्रशर संचालकों द्वारा लगाया जा रहा है। इधर दलमा वन्य प्राणी अभ्यारण क्षेत्र में प्रजनन केंद्र, म्यूजियम व करोड़ों रुपये की लागत से बने फॉरेस्ट गेस्ट हाउस के रहने से हमेशा पर्यटकों के अलावा वन विभाग के आधिकारियों का आना-जाना लगा रहता है. बताया जाता है कि क्षेत्र के नेता, खनन विभाग, वन एवं पर्यावरण विभाग के पदाधिकारी व पत्थर माफिया की मिलीभगत से यह अवैध कारोबार चांडिल क्षेत्र में संचालित हो रही है. बताया जाता है कि यहां के एक सफेद पोश भी इस अवैध धंधा में अपना पैर जमा चुका है। जो क्षेत्र के अवैध कारोबारी और पदाधिकारियों के बीच तालमेल बिठाने में एक सफल बिचोलिए के रूप में कार्यरत है। सफेदपोश के घर से एक सदस्य निर्वाचित जनप्रतिनिधि के रूप में कार्यरत है वहीं वे खुद सत्ताधारी दल से जुड़े होने के कारण प्रशासनिक पदाधिकरी भी प्रत्यक्ष रूप से किसी बात को लेकर ज्यादा सवाल जवाब करने से कतराते हैं। मिली जानकारी के अनुसार इस क्षेत्र में नेताजी का खुद का भी लगभग आधा दर्जन क्रशर और खादान चलता है। संबंधित विभाग की ओर से जांच के नाम पर केवल कोरम पूरा कर छोड़ दिया जाता है। पदाधिकरी कभी तह तक जाने का प्रयास करते ही नहीं है , अब यह कहना मुश्किल है की इन्हें जांच न करने का आदेश ऊपर से प्राप्त है या अवैध कारोबारियों की ओर से मुंह मांगी रक्म ससमय पहुंचा जाती है। अब यह देखना और दिलचस्प होगा कि संबंधित विभाग के आला अधिकारी इस पर अकुंश लगा भी पाती है या नहीं। न कि यह पर्यावरणीय क्षति के साथ सरकार के राजस्व को क्षति पहुंचाने का काम अफसरों की मिलीभगत से चलती ही रहेगी।

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