पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने दिशोम जाहेर गढ़ में आदिवासी अस्मिता की रक्षा का दोहराया संकल्प
अब समय आ गया है कि आदिवासी समाज अपनी एकजुटता दिखाए और अपने हक-अधिकार के लिए संगठित होकर आवाज बुलंद करे : चंपई सोरेन

जमशेदपुर : चाकुलिया स्थित दिशोम जाहेर गढ़ में माथा टेकने पहुंचे झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा के लिए अपने संकल्प को फिर से दोहराया। उन्होंने हिरला मरांग बुरू और जाहेर आयो को जोहार अर्पित करते हुए कहा कि हम आदिवासी प्रकृति पूजक हैं पेड़, पहाड़, नदी और प्रकृति ही हमारे देवता हैं। हमारी संस्कृति, परंपरा और आस्था ही हमारी असली पहचान है। चंपई सोरेन ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जो लोग हमारी परंपरा और प्रकृति पूजा को छोड़ चुके हैं उन्हें आदिवासी समाज के लिए संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण का लाभ लेने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि आदिवासी समाज अपनी एकजुटता दिखाए और अपने हक-अधिकार के लिए संगठित होकर आवाज बुलंद करे। चंपई सोरेन का यह दौरा उनके द्वारा जारी आदिवासी पहचान और अधिकार रक्षा जनअभियान के तहत एक और मजबूत कदम माना जा रहा है। "हिरला मरांग बुरू!" "जोहार जाहेर आयो!! के नारों से दिशोम जाहेर गढ़ गूंज उठा।