नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर की याद में
हबीब तनवीर का जन्म मध्य प्रदेश के रायपुर में 1 सितंबर 1923 को हुआ था। वर्तमान में उनकी जन्मस्थली छत्तीसगढ़ की राजधानी है। उनका वास्तविक नाम हबीब अहमद था। बचपन से ही लिखने पढ़ने के शौकीन हबीब अहमद ने नागपुर से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एम ए तक की शिक्षा ग्रहण की।
कलाकारों को आज भी प्रेरित करती है हबीब तनवीर की शैली
मेदिनीनगर:नाटक और रंगमंच से जुड़े कलाकारों के बीच हबीब तनवीर का नाम आदर और सम्मान से लिया जाता है। साहित्य और कला के क्षेत्र में रचनात्मक एवं सृजनात्मक कार्य के लिए उन्हें सन 1969 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, सन 1983 में पद्मश्री अवार्ड, सन 2002 में पद्मभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। साथ ही सन 1996 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप भी प्रदान किया गया। उनके द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक चरणदास चोर एक ऐसा नाटक है जिसे सन 1982 के दौरान आयोजित एडिनबर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टिवल में पुरस्कृत किया गया था। इस नाटक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय रंगमंच का नाम रोशन किया और अपना नाम इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टिवल में पुरस्कृत होने वालों की सूची में पहला भारतीय नाटक का नाम दर्ज कराया। हबीब तनवीर का जन्म मध्य प्रदेश के रायपुर में 1 सितंबर 1923 को हुआ था। वर्तमान में उनकी जन्मस्थली छत्तीसगढ़ की राजधानी है। उनका वास्तविक नाम हबीब अहमद था। बचपन से ही लिखने पढ़ने के शौकीन हबीब अहमद ने नागपुर से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एम ए तक की शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने विद्यार्थी जीवन काल से ही साहित्य की रचना शुरू कर दी थी। विशेष तौर से कविता लेखन के साथ नाटक और गीतों के माध्यम से समाज के लोक दर्शन को प्रतिबिंबित करते रहे। हबीब अहमद ने साहित्य का सृजन करने के लिए छद्म नाम तनवीर का प्रयोग करते थे। बाद में वही छद्म नाम हबीब साहब के नाम के साथ जुड़ गया और हबीब तनवीर नाम लोकप्रिय हुआ। उन्होंने भारतीय रंगमंच को एक नई दिशा प्रदान करते हुए लोक रंगमंच को विकसित किया। उनके द्वारा मंचित नाटकों में छत्तीसगढ़ की लोक शैली नाचा प्रतिबिंबित होती है। आजादी के पहले और आजादी के बाद हिंदी रंगकर्म पर पारसी थियेटर की पारंपरिक शैली का गहरा प्रभाव था। हबीब तनवीर ने अंग्रेजी और यूरोपीय भाषाओं की अनुदित नाटक तथा पाश्चात्य शैली की जकड़ से हिंदी रंगमंच को मुक्त किया और नया थिएटर विकसित किया। रंग आंदोलन को मजबूती प्रदान करने के दौर में इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े। जिस वक्त हबीब तनवीर इप्टा एवं प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े थे उस वक्त हमारा हिंदुस्तान अंग्रेजों का गुलाम था। अधिकांश वरिष्ठ कलाकार और साहित्यकार जेलों में बंद थे। हबीब तनवीर ने इस परिस्थिति का सामना करते हुए इप्टा के रंग आंदोलन को मजबूती प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई। उनके चर्चित नाटकों में आगरा बाजार, शतरंज के मोहरे, पोंगा पंडित, चरणदास चोर, गांव का नाम ससुराल मोर नाम दमाद, द ब्रोकन ब्रिज, जमादारिन आदि शामिल है। नाटक मंचन के दौरान हबीब तनवीर पर सांप्रदायिक तत्वों के द्वारा हमले भी हुए। एक घटना की याद आ रही है जब जमादारिन नाटक कर रहे थे तो नाटक शुरू होने से पहले उनके नाटक के दर्शकों को हॉल से भगा दिया गया। मात्र 3 दर्शक ही हॉल में उपस्थित थे। हबीब तनवीर साहब ने उन 3 दर्शकों के लिए अपना नाटक प्रस्तुत किया। यह घटना नाटक के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करता है। हबीब तनवीर ने कई फिल्मों में भी काम किया। उनकी चर्चित फिल्मों में शामिल है फुटपाथ, चरणदास चोर, गांधी, और प्रहार। हबीब तनवीर की शैली नाटकों में लोक कला के स्वरूपों के प्रयोग के लिए कलाकारों को आज भी प्रेरित करती रहेगी। हबीब तनवीर हिंदी रंगमंच को एक नई दिशा प्रदान करते हुए 8 जून 2009 को भोपाल की धरती से दुनिया को अलविदा कह दिया। भारतीय रंगमंच में लोक कला शैली के प्रयोग के लिए हबीब तनवीर की शैली कलाकारों को आज भी प्रेरित करती रहेगी।