झारखंड उच्च न्यायालय का अहम फैसला: ग्रामीण क्षेत्रों में जेआरडीए और आरआरडीए नहीं, पंचायत का राज
कोर्ट ने इसे व्यापक रूप से पढ़ते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि 'ग्रामीण आवास' में भवन मानचित्र स्वीकृति और भवन निर्माण की अनुमति देने की शक्ति भी शामिल है।

रांची। उच्च न्यायालय ने झारखंड पंचायती राज अधिनियम और झारखंड रीजनल डेवलपमेंट अथॉरिटी (जेआरडीए) के बीच क्षेत्राधिकार के टकराव को सुलझाते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां पंचायती राज अधिनियम लागू है, ग्राम पंचायतों की शक्तियां प्रभावी होंगी और जेआरडीए अधिनियम की धाराएं, जो पंचायतों के अधिकारों से असंगत हैं, वे उस हद तक ‘निहित रूप से निरस्त’ मानी जाएंगी।
यह मामला तब सामने आया, जब याचिकाकर्ताओं ने रांची के नामकुम अंचल के सिदरौल इलाके के ग्रामीण क्षेत्र में जमीन खरीदी और नियमानुसार ग्राम पंचायत से भवन निर्माण की अनुमति लेकर भवन बनाए। कई वर्षों बाद, रांची रीजनल डेवलपमेंट अथॉरिटी (आरआरडीए) ने कार्यवाही शुरू की। आरआरडीए ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के पास सेक्शन 30 जेआरडीए के तहत पूर्व अनुमति नहीं थी और इस आधार पर इमारतों को गिराने के आदेश जारी कर दिए।
इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने आरआरडीए की कार्रवाई को चुनौती दी। इस मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस दीपक रोशन की अदालत में हुई। प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता कुमार हर्ष ने अदालत में पक्ष रखा। सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पंचायतों को अब केवल राज्य सरकार की नीतियों को लागू करने वाली संस्था के रूप में नहीं, बल्कि स्थानीय आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए स्वतंत्र कार्यक्रम बनाने और लागू करने वाली सक्षम तीसरी स्तर की सरकार के रूप में देखा जाना चाहिए।
कोर्ट ने इसे व्यापक रूप से पढ़ते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि 'ग्रामीण आवास' में भवन मानचित्र स्वीकृति और भवन निर्माण की अनुमति देने की शक्ति भी शामिल है। कोर्ट ने पाया कि जेआरडीए अधिनियम की धारा 30 सभी प्रकार के भूमि विकास के लिए प्राधिकरण से अनुमति अनिवार्य करती है जबकि पंचायती राज अधिनियम ग्रामीण आवास और भवन मानचित्र स्वीकृति का अधिकार पंचायतों को देता है।
कोर्ट ने कहा कि इन दोनों कानूनों के बीच क्षेत्राधिकार का टकराव स्पष्ट है और एक ही कार्य (भवन अनुमति) पर दो समानांतर प्राधिकार अस्तित्व में नहीं रह सकते। इसलिए, पंचायती राज अधिनियम के लागू होने के बाद, उससे असंगत जेआरडीए की धाराएं (विशेषकर धारा 30), उस सीमा तक निहित रूप से निरस्त मानी जायेगी।
रांची रीजनल डेवलपमेंट अथॉरिटी के पास गांव सिडरॉल जैसे पंचायत क्षेत्र में भवन मानचित्र पास करने की कोई शक्ति नहीं है और वहां सेक्शन 30 जेआरडीए के तहत अलग से अनुमति लेना आवश्यक नहीं है इसलिए याचिकाकर्ताओं की ओर से निर्मित भवनों को अवैध नहीं कहा जा सकता।