ताज़ा-ख़बर

आकाशवाणी केंद्र की जमीन पर भारी विसंगतियाँ - आदित्यपुर पुलिस, जिला प्रशासन और नगर निगम प्रशासक की कार्यशैली पर गंभीर सवाल

रिपोर्ट: MANISH 13 घंटे पहलेझारखण्ड

कागज़ी कार्रवाई में उलझे पीड़ित, आदित्यपुर भूमि विवाद ने उजागर की शासन-प्रशासन की नाकामी

आकाशवाणी केंद्र की जमीन पर भारी विसंगतियाँ - आदित्यपुर पुलिस, जिला प्रशासन और नगर निगम प्रशासक की कार्यशैली पर गंभीर सवाल

आदित्यपुर : सरायकेला-खरसावां जिले में आकाशवाणी केंद्र के बाहर की जमीन को लेकर जारी विवाद ने प्रशासनिक मशीनरी की कार्यशैली की पोल खोल कर रख दी है। पीड़ित राजीव कुमार वर्षों से अपनी 15.5 डिसमिल निजी भूमि की वैध दावेदारी साबित करने के लिए आयडा, नगर निगम, आवास बोर्ड और अंचल कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला। उल्टा जब उन्होंने 14 मई 2025 को जारी अंचल नोटिस के बाद किसी भी विभाग द्वारा दावा या आपत्ति न देने पर अपनी जमीन की घेराबंदी शुरू की तो आदित्यपुर पुलिस ने बिना कोई स्पष्ट कारण बताए पिलर उखाड़कर काम रुकवा दिया। राजीव का आरोप है कि 5 जुलाई 1982 के डीड (2773/2794) के आधार पर उनके पिता द्वारा खरीदी गई जमीन का बड़ा हिस्सा बिना अधिग्रहण प्रक्रिया के पार्क निर्माण और आकाशवाणी की बाउंड्री में शामिल कर लिया गया। उनके मुताबिक 7 डिसमिल जमीन पर आकाशवाणी ने गलत तरीके से बाउंड्री वॉल बना ली जबकि 8.5 डिसमिल पर अवैध रूप से पार्क खड़ा कर दिया गया - बिना मुआवज़े और बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के।

इधर नगर निगम ने अचानक 29 नवंबर 2025 को राजीव को नोटिस जारी कर विवादित भूमि को सरकारी भूखंड घोषित कर दिया जिससे आकाशवाणी प्रबंधन के दावे पर भी सवाल खड़े हो गए। निगम प्रशासक से शिकायतकर्ता का विवरण और आदेश की कॉपी पूछे जाने पर स्पष्ट जवाब नहीं मिला केवल इतना कहा गया कि डीसी ने व्हाट्सएप पर निर्देश दिया है। यह जवाब अपने आप में प्रशासनिक पारदर्शिता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। उधर पुलिस किस शिकायत पर सक्रिय हुई यह पूछे जाने पर थाना प्रभारी विनोद तिर्की के पास कोई दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं था। मामले को लेकर जब राजीव पुलिस अधीक्षक से मिले तो एसपी ने थाना प्रभारी को निर्देश दिया कि बिना जांच किसी भूमि विवाद में हस्तक्षेप न किया जाए। स्थिति और पेचीदा तब हो गई जब शनिवार शाम को राजीव द्वारा लगाए गए पिलर और बोर्ड को भी अज्ञात लोगों ने हटा दिया। राजीव का कहना है कि यह कृत्य आकाशवाणी प्रबंधन, पुलिस, जिला प्रशासन या नगर निगम के इशारे पर किया गया है। यह विवाद न केवल स्थानीय शासन-प्रशासन की अनियमितताओं, कुप्रबंधन और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे सरकारी विभाग और अधिकारी कानूनी प्रक्रिया को ताक पर रखकर आम लोगों के वैध अधिकारों को कुचलते हैं। आदित्यपुर का यह मामला आज पूरे जिले में मिसाल बन चुका है कि किस तरह फाइलों में दबे मामलों की आड़ में शक्ति-संपन्न लोग लाभ उठाते हैं जबकि पीड़ित न्याय के लिए दर-दर भटकता रह जाता है। राजीव ने हाईकोर्ट की शरण ली है और मांग की है कि अदालत के अंतिम फैसले तक यथास्थिति बनाए रखी जाए। अब देखना यह होगा कि इस जटिल विवाद में असली दोषी कौन निकलता है - आकाशवाणी प्रबंधन, पुलिस, नगर निगम प्रशासन या फिर पूरा तंत्र ही जवाबदेही से भागने की फिराक में है।

इन्हें भी पढ़ें.