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सरकारी दावों की पोल खोलती तस्वीर, खुले में पढ़ाई, खुले में शौच - कब जागेगी व्यवस्था? खंडहरनुमा विद्यालय की करुण गाथा

रिपोर्ट: शनिरंजन 2 दिन पहलेझारखण्ड

टपकती छत, टूटी दीवारें, न पानी न शौचालय - शिक्षा नहीं, जोखिमों के बीच रोज़ जंग लड़ते आदिम बच्चे!

सरकारी दावों की पोल खोलती तस्वीर, खुले में पढ़ाई, खुले में शौच - कब जागेगी व्यवस्था? खंडहरनुमा विद्यालय की करुण गाथा

चैनपुर, गुमला : चैनपुर प्रखंड के बरडीह पंचायत में स्थित नव प्राथमिक विद्यालय चापाझरिया आज शिक्षा का केंद्र नहीं बल्कि भय और उपेक्षा का प्रतीक दिखाई देता है। आदिम जनजाति समुदाय के 15 नन्हे विद्यार्थी जिनके हाथों में किताबें होनी चाहिए थीं वे अपनी ही स्कूल की टूटती दीवारों और झरते छज्जों के बीच रोज़ मौत का जोखिम उठाकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। भारत जैसे उभरते विकासशील देश में ऐसी भयावह तस्वीर वैश्विक स्तर पर न केवल चौंकाती है बल्कि शिक्षा के अधिकार और बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न भी खड़े करती है। विद्यालय भवन पूरी तरह अपनी मूल संरचना खो चुका है। दीवारें जगह-जगह से उखड़ चुकी हैं, छतें किसी भी समय गिर सकती हैं और बरसात के दिनों में पूरा विद्यालय पानी से भर जाता है। बच्चों को खुले, असुरक्षित कमरों में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है जहां न दरवाज़े हैं न खिड़कियाँ। शिक्षण सामग्री रखने के लिए केवल एक कमरे में टूटा-फूटा दरवाज़ा है जो स्वयं खतरनाक स्थिति में है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती, यह तो सिर्फ शुरुआत है। पेयजल सुविधा के अभाव ने बच्चों की जिंदगी और मुश्किल कर दी है। विद्यालय की जल मीनार दो वर्षों से खराब है। बच्चे, रसोइया और शिक्षिका तक आधा किलोमीटर दूर से पानी ढोने को मजबूर हैं। मध्याह्न भोजन के बाद प्यासे बच्चे या तो घर से लाई सीमित पानी की बोतलों पर निर्भर रहते हैं या फिर धूल भरे, असुरक्षित रास्तों से होकर दूर तक पानी लेने जाते हैं। यह स्थिति बाल सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक है। शौचालय का हाल तो इससे भी भयावह है पूरी तरह जर्जर, उपयोग लायक नहीं। बच्चियाँ खुले में शौच जाने को मजबूर होती हैं जहां सुरक्षा, गोपनीयता और स्वच्छता तीनों का अभाव है। महिला शिक्षिका अनीता मिंज ने भावुक होकर कहा कि हर दिन बच्चों के साथ हमें भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। पानी और शौचालय न होना सबसे बड़ा संकट है। विद्यालय प्रभारी पारा शिक्षक मनोरंजन कुजूर ने बताया कि जब से योगदान दिया, विद्यालय इसी हालत में है। कई बार शिकायत की पर कोई सुनवाई नहीं। पंचायत मुखिया ईश्वर खेस ने भी इस भयावह स्थिति पर प्रशासन की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि भवन पूरी तरह क्षतिग्रस्त है और इसकी जानकारी पूर्व उपायुक्त तक को दी गई थी लेकिन कार्रवाई आज भी शून्य है। ग्रामीणों में भी गहरा आक्रोश है। सीताराम कोरवा, ननकी देवी, धनवीर कोरवा, ललिता कोरवाईन समेत कई लोगों ने कहा कि क्या प्रशासन तभी जागेगा जब कोई बड़ा हादसा हो जाएगा? क्या इन 15 मासूमों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं? चापाझरिया विद्यालय की यह दुर्दशा केवल एक स्कूल की समस्या नहीं बल्कि यह भारत के कई ग्रामीण इलाकों की शिक्षा व्यवस्था की खामियों का आईना है। आधुनिक भारत, डिजिटल इंडिया, शिक्षा में सुधार के जुमलों के बीच यह दर्दनाक दृश्य याद दिलाता है कि देश का वह हिस्सा अब भी अंधकार में है जहाँ बच्चों का भविष्य सरकार की उपेक्षा की भेंट चढ़ रहा है।

क्या कोई सुनने वाला है?

क्या इन बच्चों का भविष्य केवल रिपोर्टों और फाइलों में खोकर रह जाएगा? या फिर यह भयावह दृश्य देश को जगाने वाली आखिरी चेतावनी साबित होगा? यह सवाल सिर्फ बरडीह पंचायत का नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक करुण संदेश है कि जब शिक्षा की नींव ही खंडहर हो तो विकास की इमारत कभी खड़ी नहीं हो सकती।

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