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बरसात ने छीन ली छत, नीमडीह प्रखंड प्रशासन ने छीना सपना, आवास योजना में नाम दर्ज होने के बावजूद पक्के घर का इंतज़ार

रिपोर्ट: VBN News Desk10 घंटे पहलेझारखण्ड

नीमडीह में चार परिवारों का दर्द, बारिश में ढहा आशियाना, अब तक नहीं मिला आवास योजना का सहारा

बरसात ने छीन ली छत, नीमडीह प्रखंड प्रशासन ने छीना सपना, आवास योजना में नाम दर्ज होने के बावजूद पक्के घर का इंतज़ार

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नीमडीह : लगातार हो रही बारिश ने नीमडीह प्रखंड के लाकड़ी पंचायत अंतर्गत पुरियारा और बांदू गांव के चार गरीब परिवारों की जिंदगी को और भी भयावह बना दिया है। झोपड़ी जैसे घर बारिश की मार से ढह चुके हैं, और अब ये परिवार टपकती छत पर प्लास्टिक की चादर बांधकर रातें गुजारने को मजबूर हैं। पुरियारा के माधोबी दास, खुख़ून ग्वालिन, बाबूलाल गोप और बांदू गांव के रोहिदास महतो इन चारों परिवारों को अब तक न प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला और न ही अबुआ आवास योजना का। इनमें से कुछ के नाम योजनाओं की सूची में दर्ज हैं लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही हाथ आया है।

माधोबी दास की पीड़ा

माधोबी दास जिनका नाम अबुआ आवास योजना में है वो कहती हैं कि बारिश में घर धंस गया अब झोपड़ी भी नहीं रही। मनरेगा में एक दिन मजदूरी मिली थी। अब पूरी रात सिर पर पोलीथिन डालकर काटते हैं।

बाकी परिवारों का भी यही हाल

खुख़ून ग्वालिन, बाबूलाल गोप और रोहिदास महतो कहते हैं कि रोज़ की मजदूरी से जैसे-तैसे पेट भरते हैं। आवास बनाने के बारे में सोच भी नहीं सकते। योजनाओं से जुड़ने की उम्मीद थी लेकिन अब तक कुछ भी नहीं मिला। उन्होंने कहा कि सरकार अमीरों को पक्के घर दे रही है हम गरीब सिर्फ लाइन में खड़े हैं।

जनकल्याण योजनाओं पर सवाल

नीमडीह ब्लॉक में हर साल सैकड़ों आवास स्वीकृत किए जाते हैं लेकिन ऐसे ज़रूरतमंद परिवार अभी भी झोपड़ी में जीवन गुजार रहे हैं। यह सवाल उठता है कि जब नाम सूची में है तो लाभ अब तक क्यों नहीं मिला? मुखिया से लेकर प्रखंड कार्यालय तक गुहार लगाई गई लेकिन हर बार सिर्फ वादे ही मिले। लगातार हो रही बारिश ने हालात और बदतर बना दिए हैं। अगर समय रहते मदद नहीं मिली तो ये परिवार किसी भी बड़े हादसे के शिकार हो सकते हैं। बारिश हर साल आती है पर इन परिवारों के लिए हर बार एक नई त्रासदी लेकर आती है। सवाल यह है कि क्या इनका इंतजार कभी खत्म होगा? या ये हर साल सिर पर पोलीथिन तानकर सरकार की योजनाओं का सपना देखते रहेंगे?

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