ग्रामीण झारखंड में पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया सोहराय पर्व
मवेशियों के प्रति कृतज्ञता और प्रेम का प्रतीक बना फसल उत्सव

सरायकेला : दिवाली के दूसरे दिन सरायकेला-खरसावां जिले के ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक उल्लास के साथ सोहराय पर्व मनाया गया। यह पर्व न केवल फसल उत्सव है बल्कि मवेशियों विशेष रूप से बैल और भैंसों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने का प्रतीक भी है। पांच दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत कांचा दिया से होती है और बुढ़ी बांधना के साथ इसका समापन होता है। ग्रामीणों ने अपने मवेशियों को नहलाकर सरसों तेल लगाया, फूलों की माला और रंग-बिरंगे रंगों से सजाया। ढोल-नगाड़े और लोकगीतों की गूंज से पूरा माहौल भक्तिमय बन गया। चरवाहे गीत गाते हुए गांव-गांव घूमकर अपने पशुधन को जगाते और आशीर्वाद स्वरूप पकवान खिलाते हैं। यह पर्व मवेशियों के प्रति आस्था, स्नेह और कृतज्ञता का उत्सव है जो झारखंड की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और ग्रामीण परंपरा की जीवंत झलक पेश करता है। सोहराय ने एक बार फिर याद दिलाया कि धरती, खेती और पशुधन तीनों का सम्मान ही सच्चा उत्सव है।