ईचागढ़-चांडिल डैम विस्थापितों के हक और अधिकार की लड़ाई तेज, संगठन की अगुवाई करेंगे समाजसेवी विवेक सिंह बाबू
चांडिल डैम के विस्थापित एवं समाजसेवी विवेक सिंह बाबू ने कहा कि अब यह संघर्ष आर-पार की लड़ाई होगी।

ईचागढ़ : चांडिल डैम निर्माण के दौरान विस्थापित किए गए 84 मौजा और 116 गांवों के हजारों परिवार आज भी अपने हक और अधिकार से वंचित हैं। विस्थापितों को पुनर्वास, नौकरी और सम्मानजनक जीवन देने के वादे के बावजूद उन्हें बेरोजगारी, बेघर होने और भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। विस्थापितों का आरोप है कि तत्कालीन बिहार सरकार ने खतियानी रैयती, वास्तु और बीटा जमीन को छलपूर्वक अधिग्रहित कर लिया लेकिन पुनर्वास और नौकरी के जो वादे किए गए थे, वे केवल कागजों तक सीमित रह गए। अलग झारखंड राज्य बनने के बाद भी विस्थापितों को उनका हक नहीं मिला। विस्थापितों की समस्याएं और आरोप है कि नेताओं ने विस्थापितों को सिर्फ वोट बैंक तक सीमित रखा। संगठन बनने के बावजूद वे केवल अधिकारियों और नेताओं से तालमेल बनाकर व्यक्तिगत लाभ उठाते रहे। विस्थापितों को मिलने वाली नौकरियां बाहरी लोगों को बेची गईं। विकास के लिए अधिग्रहित जमीनों को अवैध रूप से बेचा गया। पुनर्वास कार्यालय में भ्रष्टाचार चरम पर है, हाल ही में 13.74 करोड़ के पुनर्वास मद की लूट हुई। 1993 के बाद से विस्थापितों को नौकरी देने की प्रक्रिया बंद कर दी गई, लेकिन इसका कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। नौकरी के लिए बनाए गए विस्थापित पैनल को पुनर्वास कार्यालय ने दबाकर रखा है, और अब उसे नष्ट करने की साजिश हो रही है। इन आरोपों के बाद विस्थापितों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया है। विस्थापितों का कहना है कि पुनर्वास कार्यालय में फैले भ्रष्टाचार और दलाली के कारण वे लगातार शोषित हो रहे हैं। अब "विस्थापित अधिकार संघर्ष मोर्चा" को पुनर्जीवित कर इस अन्याय के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी जाएगी। चांडिल डैम के विस्थापित एवं समाजसेवी विवेक सिंह बाबू ने कहा कि अब यह संघर्ष आर-पार की लड़ाई होगी। विस्थापितों के हक के लिए हर स्तर पर लड़ाई लड़ी जाएगी और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों व दलालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की जाएगी। विस्थापितों की मांग है कि सरकार जल्द से जल्द उनकी समस्याओं का समाधान करे, अन्यथा बड़े स्तर पर आंदोलन छेड़ा जाएगा।