JFCI गोदाम अग्निकांड के बाद कटघरे में प्रशासन, नियमों की भारी अनदेखी, जांच धीमी, डेटा ऑपरेटर को बनाया बलि का बकरा
अभिषेक हाजरा-राजू सेनापति मौत मामले में बढ़ा विवाद - लापरवाही, भ्रष्टाचार और संदिग्ध सीलिंग प्रक्रिया पर CBI जांच की मांग तेज

गम्हरिया : सरायकेला जिले के गम्हरिया प्रखंड परिसर स्थित JFCI गोदाम में 28 अक्टूबर की रात लगी आग अब सिर्फ एक हादसा नहीं बल्कि प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवालों का मामला बन चुकी है। आग में AGM अभिषेक हाजरा और ट्रांसपोर्टर राजू सेनापति की मौत के बाद बीस दिन बीत जाने के बावजूद न पुलिस किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकी और न फोरेंसिक टीम। ऐसे में विभागीय स्तर पर शुरू हुआ आरोप-प्रत्यारोप अब कई परतों को उजागर कर रहा है।
डेटा ऑपरेटर को बलि का बकरा बनाने का आरोप
जिला आपूर्ति पदाधिकारी ने गोदाम के डेटा ऑपरेटर अशोक शर्मा पर अनाज हेराफेरी का मामला दर्ज कराया है। लेकिन अशोक का आरोप है कि प्रशासन अपनी गड़बड़ियों को छिपाने के लिए उन्हें बलि का बकरा बनाना चाहता है। उनका कहना है कि घटना के बाद वे लगातार TMH में घायल AGM की मदद में लगे थे उसी बीच उनसे जबरन FIR लिखवाई गई, शो-कॉज भेजा गया और जांच में असहयोग का आरोप थोप दिया गया। अशोक का कहना है कि उनका काम सिर्फ AGM को रिपोर्ट करना और डिस्पैच का डेटा एंट्री करना है और अब बड़े अधिकारियों की भूमिका को बचाने के लिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
सीलिंग प्रक्रिया पर सबसे बड़ा सवाल
घटना से पहले गोदाम आखिरी बार कब सील हुआ था? क्या BCO-MO-AGM की अनिवार्य उपस्थिति वाली सीलिंग प्रक्रिया पूरी की गई थी? जांच रिपोर्ट में इसका कोई साफ जिक्र नहीं है जो संदेह को और गहरा करता है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि घटना के तुरंत बाद गोदाम को सील नहीं किया गया बल्कि एक सप्ताह बाद सील किया गया जिससे कई शंकाएँ खड़ी हुईं। यदि MO और BCO जिम्मेदार पदों पर थे तो उन्हें शो-कॉज क्यों नहीं किया गया और घटना के दौरान विभाग का कार्यभार संभाल रहे अधिकारी कौन थे? इतना ही नहीं अचानक BCO सुनील कुमार चौधरी को MO का प्रभार दिया जाना भी सवालों के घेरे में है कि क्या यह घटना के बाद नज़रें हटाने की कवायद थी?
ADC की पूर्व जांच और अनाज स्टॉक पर विरोधाभास
आग से एक महीने पहले DC के निर्देश पर ADC जयवर्धन कुमार की रिपोर्ट में कहा गया था कि गोदाम में पर्याप्त खाद्यान्न मौजूद है। फिर आग के बाद अनाज कम क्यों पाया गया? क्या बचा हुआ अनाज गिना गया था? यदि हां तो उस समय कौन अधिकारी मौजूद थे इसका उल्लेख रिपोर्ट में क्यों नहीं है?
दो बार सीलिंग और अन्य गोदामों पर कार्रवाई न होने से बढ़ी आशंका
गोदाम को दो बार सील किए जाने के मामले में प्रशासन पूरी तरह चुप है। यदि बड़े पैमाने पर गबन का अंदेशा है तो अन्य गोदामों को क्यों नहीं सील किया गया? क्या किसी अन्य गोदाम से डीलरों को अनाज सप्लाई की गई थी? इस पर भी कोई स्पष्ट जांच नहीं दिखती। पांच संदिग्ध डीलरों (सुशील कुमार, प्रदीप ठाकुर, कोकिल, राजू जायसवाल और किशोर गुप्ता) के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? अंदरखाने की मानें तो विभाग का बड़ा हिस्सा इनकी पकड़ में है और इन्हीं के इशारे पर मीडिया ट्रायल चलाकर जांच को गलत दिशा दी गई।
राजू सेनापति की भूमिका और ठेकेदार की जिम्मेदारी पर भी सवाल
घटना में मारे गए राजू सेनापति को DSD ठेकेदार बताया गया जबकि वे अभी कार्यभार ग्रहण ही नहीं किए थे। वास्तविक प्रभार सांवरमल अग्रवाल उर्फ सांवरिया सेठ के पास था लेकिन विभागीय रिपोर्ट में उनका नाम नहीं है। यह भी बड़ी चूक या जानबूझकर बनाए गए मौन का संकेत देता है।
AGM अभिषेक हाजरा पर 30,000 क्विंटल गबन का आरोप - क्या यह संभव था?
मीडिया ट्रायल में अभिषेक हाजरा पर भारी गबन का आरोप लगाया गया लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर गबन एक-दो महीने में संभव ही नहीं। यदि गबन वर्षों से हो रहा था तो किसने इसकी जांच की? किन अधिकारियों की भूमिका थी? उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
CBI जांच की मांग हुई तेज
केंद्र की योजना का खाद्यान्न गायब होने के आरोप के चलते विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मामला स्थानीय स्तर से बहुत बड़ा है। प्रशासनिक लापरवाही, सीलिंग प्रक्रिया की अनदेखी, विभागीय भ्रष्टाचार और संदिग्ध अधिकारियों की मिलीभगत के इतने सारे सवालों का जवाब सिर्फ CBI जांच ही दे सकती है। स्थानीय स्तर की जांच इस विस्तृत और जटिल भ्रष्टाचार जाल को उजागर करने में सक्षम नहीं दिखती।
अग्निकांड ने सिर्फ दो जानें नहीं ली इसने सिस्टम की पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रशासन की नीयत पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं जिनके जवाब अब तक अनुत्तरित हैं।