ताज़ा-ख़बर

खरसावां की धरती पर बदलाव की बयार, अवैध अफीम से धान की लहलहाती फसल तक पहुंची रीडिंग पंचायत की कहानी

रिपोर्ट: MANISH 4 घंटे पहलेझारखण्ड

सरकार और पुलिस-प्रशासन की पहल से किसानों की सोच में आया परिवर्तन

खरसावां की धरती पर बदलाव की बयार,  अवैध अफीम से धान की लहलहाती फसल तक पहुंची रीडिंग पंचायत की कहानी

सरायकेला : खरसावां प्रखंड की रीडिंग पंचायत आज बदलाव की मिसाल बन चुकी है। जिस धरती पर कभी अवैध अफीम की खेती का दबदबा था वहीं अब धान की हरी-भरी फसलें लहलहा रही हैं। यह केवल खेतों में बदलाव नहीं बल्कि सोच और मानसिकता के स्तर पर भी एक ऐतिहासिक परिवर्तन है।

85 एकड़ जमीन मुक्त, ग्रामीण अब पूरी तरह पारंपरिक खेती के लिए प्रतिबद्ध

IMG-20250912-WA0063.jpg

पिछले वर्ष तक लगभग 100 एकड़ भूमि पर अवैध अफीम बोई जाती थी। लेकिन झारखंड सरकार के निर्देश पर पुलिस-प्रशासन ने जब कठोर अभियान छेड़ा तो 85 एकड़ जमीन को अफीम से मुक्त कराया गया। यह काम केवल डंडे के जोर पर नहीं हुआ बल्कि जागरूकता और संवाद के माध्यम से किसानों के दिल-दिमाग में भी नई सोच बोई गई। यही कारण है कि ग्रामीण अब खुलेआम कह रहे हैं कि हम भटके थे अब अपनी जड़ों की ओर लौट आए हैं। किसानों का कहना है कि अफीम की खेती तात्कालिक लालच में अपनाई गई थी मगर उससे जीवन में असुरक्षा और अविश्वास ही पनपा। आज जब वे धान और पारंपरिक फसलों को उगा रहे हैं तो उन्हें न केवल आत्मसम्मान का अनुभव हो रहा है बल्कि समाज में स्वीकृति और सम्मान भी मिल रहा है। ग्रामीणों की मांग है कि उनकी मेहनत का न्यायसंगत मूल्य मिले ताकि यह बदलाव टिकाऊ बन सके।

सरकार और पुलिस-प्रशासन की पहल से किसानों की सोच में आया परिवर्तन

IMG-20250912-WA0064.jpg

खरसावां थाना प्रभारी गौरव कुमार ने साफ चेतावनी दी है कि भविष्य में अगर फिर से अफीम की खेती का प्रयास हुआ तो कड़ी कानूनी कार्रवाई होगी। वहीं पुलिस अधीक्षक मुकेश लुणायत ने किसानों को भरोसा दिलाया है कि पुलिस-प्रशासन हर कदम पर उनके साथ खड़ा रहेगा बशर्ते वे पारंपरिक खेती के पथ पर बने रहें। समाजसेवी और सरायकेला नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष मनोज कुमार चौधरी इस बदलाव को सिर्फ फसलों का नहीं बल्कि सोच का क्रांतिकारी परिवर्तन बताते हैं। मनोज चौधरी का कहना है कि यह बदलाव खेती की मिट्टी से ज्यादा दिल और दिमाग की जड़ों में हुआ है। कभी नक्सलवाद और अवैध गतिविधियों की छाया में दबी यह धरती आज विकास और सकारात्मकता का प्रतीक बन रही है। खरसावां का यह सफर यह सिखाता है कि यदि प्रशासन और समाज साथ आ जाएं तो सबसे गहरी जड़ें जमाए बुराई भी उखाड़ी जा सकती है और वहां से जीवनदायी हरियाली का नया इतिहास लिखा जा सकता है।

इन्हें भी पढ़ें.