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झारखंड के एकलव्य विद्यालय में जादू-टोना का मनगढ़ंत आरोप लगाकर तीन नाबालिग छात्राओं को जबरन निकाला, DCPU की जांच में झूठे निकले आरोप

रिपोर्ट: VBN News Desk9 घंटे पहलेझारखण्ड

बाल संरक्षण इकाई ने विद्यालय प्रबंधन को बताया दोषी, आदिवासी बच्चियों पर जादू-टोना का ठप्पा लगा मानवाधिकारों का उल्लंघन

झारखंड के एकलव्य विद्यालय में जादू-टोना का मनगढ़ंत आरोप लगाकर तीन नाबालिग छात्राओं को जबरन निकाला, DCPU की जांच में झूठे निकले आरोप

बरवाडीह : लातेहार जिले के बरवाडीह प्रखंड स्थित मंगरा रोड के एकलव्य आवासीय विद्यालय से कक्षा 8 की तीन छात्राओं को भूत-प्रेत और जादू-टोना जैसे मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर निकाले जाने की घटना ने पूरे राज्य को झकझोर दिया है। कल्याण विभाग द्वारा संचालित इस विद्यालय का उद्देश्य आदिवासी बच्चों को सुरक्षित, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है लेकिन यहाँ उन्हीं बच्चियों को अंधविश्वास के नाम पर प्रताड़ित कर दिया गया वह भी बिना किसी सबूत, प्रक्रिया या विभागीय नियमों का पालन किए। विद्यालय प्रबंधन ने दावा किया कि बच्चियों ने रात में छात्रावास और महिला शिक्षक क्वार्टर के बाहर तंत्र-विद्या से जुड़ी गतिविधियाँ कीं। हैरानी की बात यह है कि प्रिंसिपल ने पूरे क्षेत्र पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बरवाडीह के लोग जादू-टोना करते हैं। यह बयान न सिर्फ़ अपमानजनक है बल्कि जातीय-सांस्कृतिक पूर्वाग्रह का घोर उदाहरण है। अभिभावकों ने बच्चियों को निर्दोष बताया और शिक्षा जारी रखने की गुहार लगाई परंतु विद्यालय ने उनकी एक न सुनी जो कि एकलव्य विद्यालय संचालन दिशा-निर्देश, JJ Act 2015 तथा Right to Education Act, 2009 के सीधे उल्लंघन हैं। किसी भी आवासीय विद्यालय में बच्चे को निष्कासन से पहले लिखित आरोप, जांच समिति, परामर्श एवं विभागीय अनुमोदन अनिवार्य है जो यहाँ नहीं अपनाए गए। बच्चियों पर लगे आरोपों की शिकायत पर जिला बाल संरक्षण इकाई (DCPU) की सदस्य रूबी कुमारी जब जांच के लिए पहुँचीं तो शुरुआत में उन्हें विद्यालय में प्रवेश तक नहीं दिया गया। वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद प्रवेश मिला और जांच में स्पष्ट हुआ कि विद्यालय प्रबंधन के दावों का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। रूबी कुमारी ने मामले को अत्यंत दुखद और मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता एवं कांग्रेसी नेता अवधेश मेहरा ने इसे आदिवासी बच्चियों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार बताते हुए कठोर कार्रवाई की मांग की है। यह मामला न सिर्फ़ शिक्षा तंत्र की गंभीर नाकामी उजागर करता है बल्कि यह भी बताता है कि अंधविश्वास और पूर्वाग्रह कैसे नाबालिग बच्चों का भविष्य बर्बाद कर सकते हैं। अब पूरा मामला विभागीय स्तर पर संवेदनशीलता से देखा जा रहा है और संबंधित कर्मियों पर कार्रवाई की मांग तेज हो गई है।

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