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खाकी की नई परिभाषा, नक्सल हिंसा से शांति तक, तिरुलडीह थाना बन रहा अंतरराष्ट्रीय मॉडल, ऑर्गेनिक खेती और सामुदायिक पुलिसिंग से बदली तिरुलडीह की तस्वीर

रिपोर्ट: MANISH 7 घंटे पहलेझारखण्ड

सीमित संसाधनों में तिरुलडीह थाना का असाधारण प्रदर्शन, एसपी मुकेश लुणायत की टीम गढ़ रही पुरस्कार योग्य मॉडल

खाकी की नई परिभाषा, नक्सल हिंसा से शांति तक, तिरुलडीह थाना बन रहा अंतरराष्ट्रीय मॉडल, ऑर्गेनिक खेती और सामुदायिक पुलिसिंग से बदली तिरुलडीह की तस्वीर

सरायकेला-खरसावां (झारखंड) : भारतीय समाज में आम तौर पर पुलिस को लेकर जनता के बीच सख्त, रूखे और डर पैदा करने वाले व्यवहार की धारणा बनी रहती है लेकिन सरायकेला-खरसावां जिले का तिरुलडीह थाना इस सोच को पूरी तरह बदलने का उदाहरण बनकर उभरा है। यह वही थाना क्षेत्र है जिसने नक्सल हिंसा का सबसे काला दौर देखा है। वर्ष 2019 में कुकड़ू हाट बाजार में नक्सलियों द्वारा पांच पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या के बावजूद यहां की पुलिस का मनोबल नहीं टूटा। आज यह थाना न सिर्फ अपराध नियंत्रण बल्कि सामुदायिक सहभागिता, सामाजिक सौहार्द और नवाचार के कारण राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान का प्रबल दावेदार माना जा रहा है।

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इस परिवर्तन के पीछे जिले के पुलिस अधीक्षक मुकेश कुमार लुणायत की दूरदर्शी नेतृत्व क्षमता रही है। उन्होंने सख्त लेकिन संवेदनशील पुलिसिंग को मूल मंत्र बनाते हुए थाना स्तर पर नवाचार, जनसंवाद और भरोसे की संस्कृति को बढ़ावा दिया। उनके निर्देशन में तिरुलडीह थाना प्रभारी अविनाश कुमार ने जमीनी स्तर पर पुलिस और जनता के बीच की दूरी को पाटने का कार्य किया। मृदुभाषी, मिलनसार और समाधान-आधारित कार्यशैली के कारण आज छोटे-मोटे विवाद आपसी समझ से सुलझ जाते हैं, जिससे मुकदमों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।

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तिरुलडीह थाना की सबसे अनूठी पहचान बने हैं एएसआई रंजीत प्रसाद यादव जिन्होंने थाना केवल कानून का केंद्र नहीं बल्कि समाज निर्माण का केंद्र भी हो सकता है, इस सोच को व्यवहार में उतारा। थाना परिसर में प्रवेश करते ही हरियाली, फूल-पौधे, मौसमी सब्जियां और फलदार वृक्ष नजर आते हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद ड्यूटी के साथ-साथ ऑर्गेनिक खेती और बागवानी को अपनाकर उन्होंने पुलिसकर्मियों और आम लोगों के लिए एक मिसाल पेश की है।

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एएसआई रंजीत प्रसाद यादव बताते हैं कि यह सफलता अकेले की नहीं बल्कि पूरे थाना बल के सामूहिक प्रयास का परिणाम है। थाना परिसर में उगाई गई सब्जियां पुलिसकर्मी स्वयं उपयोग करते हैं और जरूरतमंदों में भी बांटी जाती हैं। इससे न सिर्फ आत्मनिर्भरता बढ़ी है बल्कि ग्रीन पुलिसिंग का संदेश भी समाज तक पहुंचा है। आसपास के किसान भी इससे प्रेरित होकर ऑर्गेनिक खेती अपना रहे हैं जिससे उनकी आय और स्वास्थ्य दोनों में सुधार हुआ है।

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सुरक्षा के मोर्चे पर भी तिरुलडीह थाना ने उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। पश्चिम बंगाल सीमा से सटे इस संवेदनशील क्षेत्र में हिंदू, मुस्लिम और आदिवासी समुदाय बड़ी संख्या में रहते हैं इसके बावजूद वर्षों से कोई सांप्रदायिक तनाव या दंगा नहीं हुआ। वर्ष 202-25 के आंकड़ों के अनुसार थाना क्षेत्र में केवल 5 चोरी और 1 गृहभेदन का मामला दर्ज हुआ है जो नक्सल प्रभावित इलाके के लिए असाधारण उपलब्धि मानी जा सकती है। आधी रात में भी लोग बेखौफ आवाजाही कर रहे हैं जो जनता के बढ़ते भरोसे का प्रमाण है। सबसे खास बात यह है कि तिरुलडीह थाना में निजी स्तर पर इमरजेंसी के लिए पानी का छोटा टैंकर और एम्बुलेंस की व्यवस्था भी की गई है जो आपदा और जरूरत के समय आम लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है।

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राष्ट्रीय पुरस्कार के मानकों पर खरा उतरता तिरुलडीह थाना

यदि केंद्र सरकार के राष्ट्रीय पुलिस पुरस्कार के मापदंडों पर नजर डालें तो तिरुलडीह थाना लगभग सभी बिंदुओं को पूरा करता है जैसे अपराध में कमी और प्रभावी कानून व्यवस्था, नक्सल प्रभावित क्षेत्र में शांति और स्थिरता, सामुदायिक पुलिसिंग और सामाजिक सौहार्द, नवाचार (ऑर्गेनिक खेती, ग्रीन थाना मॉडल), जनता का विश्वास और पारदर्शिता, नेतृत्व क्षमता और टीमवर्क आदि मानकों पर खड़ा उतरता है।

एसपी मुकेश लुणायत के मार्गदर्शन, थाना प्रभारी अविनाश कुमार की संवेदनशील कार्यशैली और एएसआई रंजीत प्रसाद यादव की नवाचारी सोच ने मिलकर तिरुलडीह थाना को नेगेटिव पुलिसिंग से निकालकर पॉजिटिव पुलिसिंग के राष्ट्रीय मॉडल के रूप में स्थापित किया है। यह थाना आज साबित करता है कि खाकी अगर संवेदनशील हाथों में हो तो वह डर नहीं बल्कि भरोसे और विकास का प्रतीक बन सकती है।

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