सोनागाछी में मतदाता सूची से बाहर होने का भय, एसआईआर प्रक्रिया पर यौनकर्मियों की संगठनों ने चुनाव आयोग से लगाई राहत की गुहार
2002 के दस्तावेज कहां से लाएँ? एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट क्षेत्र में पहचान संकट, तीन संगठनों ने मांगा मानवीय समाधान

कोलकाता का सोनागाछी (जिसे एशिया का सबसे बड़ा रेडलाइट इलाका माना जाता है) में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया को लेकर गहरी चिंता व्याप्त है। मतदाता सूची में बने रहने के लिए 2002 के पारिवारिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करने की अनिवार्यता ने हजारों यौनकर्मियों को अनिश्चितता और भय की स्थिति में ला खड़ा किया है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए सोसाइटी फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट एंड सोशल एक्शन, उषा मल्टीपरपज कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड और अमरा पदातिक ने राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी मनोज अग्रवाल को पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। तीनों संगठनों ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि सोनागाछी में रहने वाली लगभग 10,000 यौनकर्मियों में से बड़ी संख्या ऐसे पृष्ठभूमि से आती है जहां पारिवारिक रिकॉर्ड का कोई अस्तित्व ही नहीं है। कई महिलाएँ घरेलू हिंसा, गरीबी या सामाजिक शोषण से बचने के लिए यहाँ आई थीं और अपने परिवारों से वर्षों पहले संपर्क टूट चुका है। अमरा पदातिक की प्रतिनिधि महाश्वेता मुखोपाध्याय कहती हैं कि क्या उन महिलाओं से 2002 के दस्तावेज की उम्मीद की जा सकती है जिनके माता-पिता तक नहीं जानते कि वे जीवित हैं? एसआईआर की प्रक्रिया किसी राजनीतिक मुद्दे से नहीं बल्कि एक संरचनात्मक समस्या से टकराती है। कई महिलाएँ 2002 से पहले बंगाल के ग्रामीण इलाकों या पड़ोसी राज्यों से बिना किसी दस्तावेज़ के सोनागाछी पहुंची थीं। कुछ अपने परिवारों के पास सामाजिक कलंक के डर से कभी वापस नहीं गईं। ऐसे में इस प्रक्रिया का कठोर स्वरूप हजारों महिलाओं की नागरिक पहचान पर संकट खड़ा कर रहा है। एक यौनकर्मी (जो 17 साल पहले अपने छोटे बेटे के साथ यहां आई थीं) कहती हैं कि मेरा बेटा मतदान करता है लेकिन मैं अपने पति या परिवार के कोई दस्तावेज़ नहीं दे सकती। मैं क्या करूँ? संगठनों ने याद दिलाया कि 2007 में राज्य निर्वाचन आयोग ने उषा कोऑपरेटिव के रिकॉर्ड के आधार पर कई यौनकर्मियों को मतदाता पहचान पत्र जारी किए थे। अब डर है कि एसआईआर में उन्हें भी अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। अपील में तीन मांगें प्रमुख हैं, वैकल्पिक पहचान दस्तावेजों को स्वीकार किया जाए, सोनागाछी में विशेष सहायता शिविर लगाए जाएँ और मौजूदा मतदाता कार्डों को संरक्षित रखा जाए। तनाव के बावजूद सोनागाछी की गलियों में उम्मीद जिंदा है। महिलाएँ चाहती हैं कि आयोग उनकी वास्तविक परिस्थितियों को समझे उनके जीवन के संघर्ष, विस्थापन और सामाजिक कलंक को महसूस करे न कि उन्हें पहचानहीनता के गर्त में धकेले।