राजनगर में पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने धर्मांतरण और घुसपैठ के खिलाफ किया बड़ा ऐलान, आदिवासी समाज से मिला भारी समर्थन, कहा : 10 लाख आदिवासियों के साथ दिल्ली तक पहुंचाएंगे आंदोलन की गूंज
पूर्व सीएम ने बांधगोड़ा गांव का हवाला देते हुए बताया कि यहां आदिवासियों की डेढ़ सौ एकड़ जमीन छीनी जा चुकी है।

सरायकेला : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने शुक्रवार को राजनगर में आयोजित एक विशाल जनसभा के दौरान धर्मांतरण और बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। अमर शहीद सिदो-कान्हू की जयंती के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग, पारंपरिक ग्राम प्रधान और धर्मगुरु उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई जिसमें देश परगना और विभिन्न मांझी-परगनाओं ने हिस्सा लिया। धर्मांतरण के मुद्दे पर आदिवासी धर्मगुरुओं ने इसे समाज के अस्तित्व के लिए खतरा बताया। सभी वक्ता मंच से एक सुर में आदिवासी अस्मिता की रक्षा की बात करते नजर आए। चंपाई सोरेन ने अपने उद्बोधन में इतिहास के पन्नों से वीर आदिवासी क्रांतिकारियों को याद करते हुए कहा कि जब हमारे पूर्वजों ने आत्मसम्मान से कभी समझौता नहीं किया तो आज हम कैसे चुप बैठ सकते हैं? उन्होंने 1967 में कार्तिक उरांव द्वारा संसद में लाए गए डीलिस्टिंग बिल का उल्लेख करते हुए कहा कि धर्मांतरण करने वालों को अनुसूचित जनजाति के आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए लेकिन कांग्रेस सरकार ने उस बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया। पूर्व सीएम ने कहा कि आज भी कई आदिवासी आरक्षित सीटों पर ऐसे लोग चुने जा रहे हैं जो आदिवासी जीवनशैली और परंपराओं को त्याग चुके हैं। यह समाज के अधिकारों पर सीधा अतिक्रमण है। उन्होंने संथाल परगना, बोकारो, हजारीबाग और ओडिशा समेत कई इलाकों में जनसभाओं की घोषणा की और कहा कि जल्द ही वे 10 लाख आदिवासियों के साथ दिल्ली तक आंदोलन की गूंज पहुंचाएंगे। चंपाई सोरेन ने साहिबगंज और पाकुड़ जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासी जमीन हड़पने और बेटियों की अस्मिता से खिलवाड़ की घटनाओं को लेकर भी सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने सरायकेला-खरसावां जिले के बांधगोड़ा गांव का हवाला देते हुए बताया कि यहां आदिवासियों की डेढ़ सौ एकड़ जमीन छीनी जा चुकी है। सरकार को घेरते हुए उन्होंने कहा झारखंड सरकार वोट बैंक की राजनीति में इतनी अंधी हो चुकी है कि ना तो उसे आदिवासियों पर हो रहा अत्याचार दिखता है और ना ही वह हमारे मुद्दों पर कोई आवाज उठाती है। कार्यक्रम का आयोजन आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा द्वारा किया गया था जिसमें भारी जनसमूह उमड़ा। यह सभा आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की रक्षा को लेकर एक बड़ा संदेश बनकर सामने आई।