झारखंड की जनजातीय संस्कृति का विदेशी शोधकर्ताओं पर जादू, दक्षिण फ्रांस के शोधकर्ताओं ने किया कोल्हान का दौरा
सरायकेला छऊ नृत्य की भावभंगिमाओं ने किया मोहित, गुरु तपन कुमार पटनायक से मिली प्रेरणा

सरायकेला : झारखंड की समृद्ध जनजातीय संस्कृति एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं का आकर्षण बनी है। दक्षिण फ्रांस से आए सांस्कृतिक शोधकर्ता एस. लेडे और एलीना क्रिस्टो ने राज्य की पारंपरिक कला, लोकजीवन और संस्कृति का गहन अध्ययन किया। दोनों ने कोल्हान क्षेत्र के पश्चिम सिंहभूम और सरायकेला जिलों का भ्रमण कर यहां की जीवंत जनजातीय परंपराओं, लोकनृत्य, संगीत, पारंपरिक वस्त्र और रीति-रिवाजों को करीब से जाना। उन्होंने कहा कि झारखंड की जनजातीय संस्कृति न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता को सशक्त करती है बल्कि अतुल्य भारत की पहचान को भी नई ऊँचाई देती है। अपने अध्ययन के दौरान दोनों ने गुरु तपन कुमार पटनायक से मुलाकात कर सरायकेला छऊ नृत्य की विशेष मुद्राओं, परिधानों और भाव-भंगिमाओं की बारीकियों को समझा। उनकी उत्सुकता पर सृष्टि छऊ निकेतन में विशेष प्रस्तुति का आयोजन किया गया, जिसमें कलाकार कुसमी पटनायक, राजतेंदु रथ, गोपाल पटनायक, प्रदीप बोस, देवराज दुबे और सुहानी सिंहदेव ने राधा-कृष्ण, धीवर, सागर, देवदासी और मदन गोपाल जैसे नृत्यों की झलकियां प्रस्तुत कीं। साथ ही परीखंडा प्रदर्शन के माध्यम से झारखंड की प्राचीन मार्शल आर्ट परंपरा को दर्शाया गया। विदेशी शोधकर्ताओं ने सरायकेला छऊ में प्रयुक्त ढोल, नगाड़ा और बांसुरी जैसे वाद्य यंत्रों की सराहना करते हुए कहा कि यह संगीत झारखंड की आत्मा को स्पंदित करता है। इसके बाद दोनों ने चाईबासा के मंगला हाट का भी भ्रमण कर जनजातीय बाजार संस्कृति का अनुभव किया।