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टाटा स्टील फाउंडेशन और नाबार्ड की साझेदारी से सरायकेला में रुका पलायन, बागवानी बनी जीवनशैली

रिपोर्ट: MANISH 7 घंटे पहलेझारखण्ड

वाड़ी परियोजना से बदल रही है आदिवासी ग्रामीणों की ज़िंदगी, बढ़ी आमदनी और आत्मविश्वास

टाटा स्टील फाउंडेशन और नाबार्ड की साझेदारी से सरायकेला में रुका पलायन, बागवानी बनी जीवनशैली

झारखंड में बागवानी से 400 परिवारों को मिला आत्मनिर्भरता का नया रास्ता

महिलाएं बनीं गांव की प्रेरणा: खेती, बकरी पालन और उद्यान समिति से बदली तस्वीर

सरायकेला : झारखंड के सरायकेला-खरसावां ज़िले में एक नई हरित क्रांति का जन्म हो चुका है। टाटा स्टील फाउंडेशन और नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) की साझेदारी से शुरू की गई वाड़ी परियोजना ने जिले के 400 से अधिक परिवारों की आजीविका को एक नया आयाम दे दिया है। 2016-17 में शुरू हुई इस परियोजना के तहत छोटे बागानों का विकास, मिट्टी व जल संरक्षण, अंतरवर्तीय फसलों की खेती, नवीकरणीय ऊर्जा और बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित की गई है। अब तक 379 एकड़ भूमि पर आम और अमरूद के पौधे लगाए गए हैं। प्रत्येक परिवार की वार्षिक आमदनी 1.5 लाख रुपये तक पहुंच रही है। टाटा स्टील फाउंडेशन के एग्रीकल्चर हेड अनंत सिंह ने बताया कि पहले इस खनन-प्रधान क्षेत्र में खेती को अस्थिर माना जाता था लेकिन अब वही समुदाय खेती को आजीविका के रूप में अपना रहा है। फल और सब्ज़ी की कटाई के बाद किसानों को कोल्ड स्टोरेज और स्थानीय मंडियों (सिनी, सरायकेला, खरसावां, कांड्रा, गम्हरिया) तक पहुंच मुहैया कराई गई है। सीजन में जमशेदपुर मंडी और नाबार्ड के रांची स्थित मैंगो फेस्टिवल जैसे बड़े बाज़ारों तक भी किसानों की उपज पहुंच रही है।

सामुदायिक भागीदारी और महिलाओं की अग्रणी भूमिका

इस पहल में 19 उद्यान विकास समितियाँ बनाई गई हैं जो 1.5 लाख रुपये के फंड का संचालन करती हैं और निर्णय लेने में पूरी भागीदारी निभाती हैं। इस परियोजना के तहत 1,600 से अधिक किसानों को बागवानी, कीट प्रबंधन और स्मार्ट कृषि तकनीकों की ट्रेनिंग दी गई है जिसमें रांची के आईसीएआर रिसर्च कॉम्प्लेक्स और रामकृष्ण मिशन की भूमिका अहम रही है। महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही है। 90 फीसदी से अधिक महिलाओं ने माना कि इस पहल ने उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता दी है। स्वयं सहायता समूह और झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के सहयोग से महिलाएं अब नर्सरी प्रबंधन, खाद बनाना और अन्य आजीविका से जुड़ी गतिविधियों में ऋण लेकर आगे बढ़ रही हैं।

बदलाव की प्रेरणादायक कहानियाँ

सुकुरमणी सोरेन जो कभी शहर में दिहाड़ी मजदूरी करती थीं अब गांव में 110 फलदार पेड़ों से 48,000 रुपए की वार्षिक आय कमा रही हैं। वे बताती हैं अब मेरे बच्चे स्कूल जाते हैं अच्छा खाते हैं क्योंकि मैंने अपने खेत से कमाया।

चार बेटियों की मां मालती सोरेन अब 1,600 बकरियों की मालकिन हैं। वे कहती हैं एक बकरी 10,000 रुपये में बिकती है मैंने बेटियों को पढ़ाया और अब गांव की महिलाएं भी मुझे देखकर आगे बढ़ रही हैं।

नई पीढ़ी के किसान और स्मार्ट खेती

युवा किसान अर्जुन मार्डी और लखन किस्कु जैसे किसान नई तकनीकों और योजनाओं (पीएमकेएसवाई, पीएम-कुसुम) का लाभ उठाकर अपनी आय को कई गुना बढ़ा रहे हैं। अर्जुन अब यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी जानकारी साझा करते हैं और इस साल 10 लाख रुपये के टर्नओवर का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।

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