मार्टिलो टावर अंग्रेजों और संथाल के बीच हूई संघर्ष की दिलाती याद
हूल विद्रोह का वास्तविक अर्थ क्रांति बगावत है । इस विद्रोह को संथाल परगना का प्रथम जन क्रांति भी कहा जाता है। काल मार्क्स ने संथाल विद्रोह को भारत की प्रथम जन क्रांति की संज्ञा दी है। इस विद्रोह को सिंदो कांन्हू चांद भैरो और फूरो झानों ने शुरुआत की थी ।
पाकुड़ सिदों कांन्हू पार्क में स्थित ऐतिहासिक मार्टिलो टावर की याद हूल क्रांति की याद ताजा कर देता है । मार्टिलो टावर अंग्रेजों और संथाल के बीच हूई संघर्ष का अवशेष हैं 1856 से अंग्रेज हुकूमत के सरमार्रटी के द्वारा रातोरात आदिवासी संथाल के हमले से बचने के लिए यहां टावर का निर्माण किया गया था । जिससे संथाल हमले से बचने का मौका मिला ।कहा जाता है कि ब्रिटिश सेना संथाल विद्रोह को रोकने के लिए टावर के अंदर से फायरिंग की थी । जिसमे बिट्रिश सेना ने हजारों संथाल लड़ाकू को हत्या कर दी थी । लेकिन संथाल के योद्दा अपनी कालाकारी दिखाते हुए वार किया और अंग्रेजी हुकुमत भगाया । वास्तव में यह टावर संथाल हूल विद्रोह को देखा है । जो अंग्रेजों के तानासाह और जमींदारों के खिलाफ हूल क्रांति की याद इस दिन को ताजा कर देती । हूल विद्रोह का वास्तविक अर्थ क्रांति बगावत है
हूल विद्रोह का वास्तविक अर्थ क्रांति बगावत है । इस विद्रोह को संथाल परगना का प्रथम जन क्रांति भी कहा जाता है। काल मार्क्स ने संथाल विद्रोह को भारत की प्रथम जन क्रांति की संज्ञा दी है। इस विद्रोह को सिंदो कांन्हू चांद भैरो और फूरो झानों ने शुरुआत की थी । और ये सभी आपस में भाई बहन थे ।1855 को भोगनाडीह गांव में लगभग 400 गांव के 6000 से अधिक आदिवासी जमा होकर इस सभा किया और कहा कि अपना देश अपना राज्य का नारा दिया और यही से हूल क्रांति का आगाज किया था । इसी दिन को हूल दिवस के रूप में मनाया जाता है।