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सोनपुर मेला में सदियों पुरानी सीटी-घिरनी परंपरा आज भी जीवित, श्रद्धालु और पर्यटक शगुन के रूप में ले जाते हैं घर

रिपोर्ट: VBN News Desk2 घंटे पहलेआर्टिकल

मिट्टी की लोक कला पर प्लास्टिक का साया, कारीगर बोले: मेहनत ज्यादा पारिश्रमिक कम, नई पीढ़ी हो रही दूर

सोनपुर मेला में सदियों पुरानी सीटी-घिरनी परंपरा आज भी जीवित, श्रद्धालु और पर्यटक शगुन के रूप में ले जाते हैं घर

सोनपुर : एशिया का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला इस वर्ष भी अपनी पारंपरिक छटा और सांस्कृतिक धरोहर के साथ देश-दुनिया के पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है। मेले में जहां आधुनिकता की चमक दिखाई देती है वहीं इसके एक कोने में आज भी सदियों पुरानी परंपरा मिट्टी की बनी सीटी और घिरनी अपनी मधुर ध्वनि और सांस्कृतिक महत्व के साथ जिंदा है। लोक मान्यता के अनुसार मिट्टी की घिरनी भगवान विष्णु (हरि) और सीटी भगवान शिव का प्रतीक मानी जाती है। यही कारण है कि सोनपुर आने वाला हर व्यक्ति इसे बाबा हरिहरनाथ का शुभ प्रसाद और शगुन समझकर अपने साथ ले जाता है। स्थानीय कारीगर हरिपुर, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर और सीतलपुर के कलाकार इन्हें मिट्टी, बांस और चारकोल से तैयार करते हैं। विक्रेता लैला बताती हैं कि लोग चाहे कितनी भी खरीदारी कर लें पर सीटी और घिरनी लिए बिना कोई सोनपुर से नहीं लौटता। यह मेले की पहचान है।” स्थानीय बुजुर्ग ठाकुर संग्राम सिंह याद करते हैं कि एक समय में 5 पैसे में चार खिलौने मिल जाते थे जबकि आज भी इनकी कीमत बेहद मामूली 10 से 20 रुपये ही है। बाजार में प्लास्टिक खिलौनों की बाढ़ के बीच पर्यावरण-अनुकूल ये मिट्टी के खिलौने विदेशी पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षक स्मृति-चिह्न बन चुके हैं। हालांकि इस कला से जुड़े कारीगर चिंता जताते हैं कि बढ़ती लागत और कम आय के कारण नई पीढ़ी इस परंपरा से दूर होती जा रही है। सोनपुर मेले की चकाचौंध के बीच मिट्टी की ये सीटी और घिरनी न सिर्फ बचपन की यादों को ताज़ा करती हैं बल्कि भारतीय लोक कला की वह कहानी भी सुनाती हैं जो समय के प्रवाह में भी आज तक अडिग खड़ी है।

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