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सरायकेला के ग्रामीण इलाकों में परंपरा और आस्था के संग बुढ़ी बांधना पर्व की धूम

रिपोर्ट: VBN News Desk3 घंटे पहलेझारखण्ड

मवेशियों की पूजा, साज-सज्जा और लोकगीतों से गूंजे गांव, झारखंड की कृषि संस्कृति का अनूठा उत्सव

सरायकेला के ग्रामीण इलाकों में परंपरा और आस्था के संग बुढ़ी बांधना पर्व की धूम

सरायकेला : झारखंड की समृद्ध ग्रामीण परंपरा और पशुधन के प्रति आस्था को समर्पित बूढ़ी बांधना पर्व मंगलवार को जिले के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में हर्षोल्लास और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया। यह पर्व प्रसिद्ध सोहराई (या बांधना) त्योहार का चौथा और अंतिम दिन होता है, जो कार्तिक अमावस्या के बाद मनाया जाता है। इस अवसर पर ग्रामीणों ने अपने मवेशियों विशेषकर गायों और बैलों की पूजा-अर्चना की। पुरुषों ने मवेशियों को नहलाकर सरसों तेल, सिन्दूर और फूल-मालाओं से सजाया, वहीं महिलाओं ने घर-आंगन को लीपा-पोती कर सुंदर बनाया। इसके बाद सोहराई गीत गाते हुए मवेशियों को सात प्रकार के अनाज से बने पकवान खिलाए गए। ग्रामीणों ने पारंपरिक रूप से बैल भड़काना की रस्म निभाई, बैलों और सांड़ों को लाल कपड़ा दिखाकर उत्साहित किया गया। यह दृश्य पूरे गांव के लिए उत्सव और रोमांच का केंद्र रहा। बूढ़ी बांधना पर्व झारखंड की कृषि संस्कृति, पशु प्रेम और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। सरायकेला के गांवों में इस दिन का उल्लास दीपावली के समान ही देखा गया जहां आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम नजर आया।

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