हजारीबाग शेख भिखारी मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में आउटसोर्स बहाली में भारी गड़बड़ी, बगैर काम किया ले रहे हैं वेतन
प्रधान लिपिक आउटसोर्स कर्मी बेटे के फर्जी अब्सेंटी पर कर रहा है हस्ताक्षर, जुलाई 2024 से हो रहा है वेतन का भुगतान

फर्जीवाड़ा के लिए बायोमैट्रिक एटेंडेंस से रखा गया है कर्मी को बाहर , मैन्युअल एपसेंटी भेज कर हो रहा है वेतन का भुगतान
हजारीबाग - हज़ारीबाग़ शेख भिखारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट कार्यालय में एक बार फिर से फर्जी तरीके से बहाली का मामला सामने आया है। इसके पूर्व इस अस्पताल में सीनियर रेजिडेंट के पद पर कार्यरत फर्जी चिकित्सक रामबाबू का खुलासा हो चुका है , जिन्हें की इसी ऑफिस से पूरा सपोर्ट मिल रहा था। जब इस मामले का उजागर विभिन्न समाचार पत्रों में किया गया तो, तत्काल कार्रवाई करते हुए सुपरिंटेंडेंट कार्यालय ने एफआईआर दर्ज कराया था। वहीं एक बार फिर से फर्जी बहाली का मामला सामने आया है । यह बहाली आउटसोर्स से जुड़ा हुआ है। हद तो इस बात की है की इस बहाली के गड़बड़ झाला में सुपरिटेंडेंट कार्यालय के ऑफिस सुपरीटेंडेंट अर्थात प्रधान लिपिक कुमुद कुमार सिन्हा की भूमिका अहम रही है। उनके पुत्र आउटसोर्स एजेंसी राइडर सिक्योरिटी एजेंसी के अंतर्गत रिफ्रेक्शनिस्ट (नेत्र सहायक) के पद पर पदस्थापित हैं । लेकिन इन्होंने एक बार भी ड्यूटी नहीं निभाई है। अहम बात यह है कि उनके पुत्र कुणाल कुमार सिन्हा ने जिस कोर्स को पूरा नहीं किया, उस पद पर अर्थात स्किल्ड दिखाते हुए बहाल कर दिया गया है और इन्हें लगातार वेतन का भुगतान किया जा रहा है। उसकी फर्जी एबसेंटी उसके पिता प्रधान लिपिक कुमुद कुमार सिन्हा बनाते हैं और उस पर हस्ताक्षर डिप्टी सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर ए के सिंह लगाते हैं। इस खेल ने जहां प्रधान लिपिक के ऊपर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है वहीं पूरे अस्पताल सवालों के घेरे में है की जो प्रधान लिपिक अवैध तरीके से अपने पुत्र को बहाल कर उसे बराबर वेतन का भुगतान करता रहा है पता नहीं और कितने गड़बड़ियां उन्होंने अपने हाथों से किया होगा।
मामला प्रधान लिपिक (आफिस सुपरीटेंडेंट) कुमुद कुमार सिन्हा हॉस्पिटल सुपरीटेंडेंट कार्यालय में पदस्थापित हैं। उनके पुत्र कुणाल कुमार सिन्हा को राइडर सिक्योरिटी एजेंसी आउटसोर्स कंपनी के माध्यम से 27 जुलाई 2024 को मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के नेत्र विभाग में रिफ्लेक्शनिस्ट के पद पर बहाल किया गया। लेकिन उस समय नेत्र विभाग में डॉक्टर के.के. लाल एचओडी थे। जिन्होंने उसकी जांच पड़ताल की तो पाया कि जिसने रिफ्रेक्शनिस्ट के कोर्स को पूरा ही नहीं किया है इसलिए उसके जॉइनिंग को रिजेक्ट कर दिया और वापस लौटा दिया था। जब वह वापस सुपरिंटेंडेंट कार्यालय पहुंचा तो उस वक्त सुपरिंटेंडेंट कार्यालय में सुपरिंटेंडेंट के पद पर डॉ विनोद कुमार पदस्थापित थे। इन्हें इस खेल में सारी गड़बड़ी की जानकारी थी , इसलिए उन्होंने उसकी सैलरी नहीं दिया। इस दौरान नाहीं कुणाल कुमार सिन्हा ने ड्यूटी की और ना ही उसका अब्सेंटी बना और ना ही उसे सैलरी मिली। जुलाई से सितंबर माह 2024 तक उसकी अब्सेंटी आउटसोर्स एजेंसी को नहीं भेजा गया। जैसे ही सितंबर 2024 में नए सुपरिंटेंडेंट के पद पर डॉक्टर अनुकरण पूर्ति ने प्रभार लिया, यह खेल शुरू हो गया। जिस महीने में नए सुपरिंटेंडेंट डॉ अनुकरण पूर्ति ने योगदान दिया । इस महीने में डिप्टी सुपरिंटेंडेंट डॉ एके सिंह के हस्ताक्षर से पत्रांक संख्या 18412 अक्टूबर 2024 के द्वारा कुणाल कुमार सिन्हा का अब्सेंटी आउटसोर्स एजेंसी राइडर सिक्योरिटी को भेजा गया। हद तो यह हो गई की इस अब्सेंटी के अभियुक्ति कॉलम में लिखा गया कि जॉइंन ऑन 27 जुलाई 2024 एरियर फॉर द मंथ आफ जुलाई 3 डेज एंड अगस्त 26 डेज, और पदाधिकारी को गुमराह करते हुए और उन्हें धोखे में रखते हुए कुणाल कुमार सिन्हा को एरियर समेत भुगतान कर दिया गया। सितंबर के बाद से लगातार डिप्टी सुपरिंटेंडेंट के हस्ताक्षर से भेजे जा रहे अब्सेंटी के आधार पर भुगतान किया जा रहा है। इसकी एबसेंटी का फर्जी प्रपत्र पिता प्रधान लिपिक कुमुद कुमार सिन्हा तैयार करते हैं और वेतन की राशि उनके पुत्र कुणाल कुमार सिन्हा फर्जी तरीके से प्राप्त करता आ रहा है।
जानकारी मिलने पर इसकी पड़ताल करने के लिए उसके डिपार्टमेंट में गया तो नेत्र विभाग में स्पष्ट कहा गया कि यहां कुणाल कुमार सिन्हा नाम का कोई भी व्यक्ति पदस्थापित नहीं है। जब कार्यालय सूत्र से जानकारी प्राप्त करना चाहा तो बताया गया कि उसकी अब्सेंटी रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट का उल्लेख करते हुए भेजा जा रहा है। जब रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में गया तो वहां इस संबंध में बताया गया कि यहां कुणाल कुमार सिन्हा नाम का कोई भी व्यक्ति कार्यरत नहीं है। अर्थात फर्जी तरीके से कुणाल कुमार सिन्हा आउटसोर्स एजेंसी से वेतन प्राप्त कर स्वास्थ्य विभाग और वहां के वरीय पदाधिकारी को चूना लगा रहा है। पड़ताल के दौरान यह पाया गया कि बायोमेट्रिक से अटेंडेंस में नाहीं उसका रजिस्टर्ड है और ना ही किसी भी विभाग में मैन्युअल अटेंडेंस के रजिस्टर में ही उसका नाम है। इस अब्सेंटी में डिप्टी सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर ए के सिंह, कुणाल कुमार सिन्हा का पिता सह प्रधान लिपिक कुमुद कुमार सिन्हा और लिपिक श्रवण कुमार का हस्ताक्षर है।
नेत्र विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉक्टर सेफा हबीब ने कहा कि मैं जब से यहां कार्यरत हूं तब से मैं जान रही हूं कि कुणाल कुमार सिन्हा नाम का कोई भी रिफ्रेक्शनिस्ट के पद पर आउटसोर्स एजेंसी से कार्यरत नहीं है।
ट्रॉमा सेंटर इंचार्ज डॉक्टर अभिषेक कुमार ने कहा कि प्रधान लिपिक एक बार अपने बेटे को लेकर आए थे, एक दिन वह आया। उसके बाद से उसको मैंने कभी नहीं देखा है।
तत्कालीन सुपरिंटेंडेंट डॉ विनोद कुमार ने कहा कि नेत्र विभाग में कुणाल कुमार सिन्हा को बहाल किया गया था। लेकिन एचओडी ने उसे हटा दिया था । इसके बाद क्या हुआ मुझे नहीं मालूम। रही बात अबसेन्टी का तो अब्सेंटी भेजने का काम डिप्टी सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर एके सिंह करते हैं।
हॉस्पिटल सुपरीटेंडेंट डा अनुकरण पूर्ति से इस संबंध में पूछे जाने पर कहा कि इसके बारे में पता करके बताया जा सकता है।
डिप्टी सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर ए.के सिंह से पूछे जाने पर कहा कि कुछ तो गड़बड़ है। मैं पूरा खंगाल दिया उसका नाम कहीं भी नहीं है।
वहीं इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मनोज़ गुप्ता उर्फ़ मैंगो मैन से जब इस मामले में पूछा तो उन्होंने कहा कि इस मामले की सम्पूर्ण जांच पूरी तह तक होनी चाहिए , बहुत सारे लोग अपने पैरवी के आधार पर आउटसोर्सिंग कम्पनी से या डीएमएफटी मद से नौकरी प्राप्त कर लिए है और ड्यूटी से गायब रहते हैं। अधीक्षक और उपाधीक्षक और कार्यालय के पदाधिकारियों का वर्चस्व प्राप्त हैं ऐसे लोगों को , विस्तृत रूप से जांच होनी चाहिए।
वहीं इस मामले में नव झारखंड फाउंडेशन के केंद्रीय अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता किशोरी राणा से जब इस मामले में पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों पर मैं खुल कर विरोध करूंगा। वहीं ऐसे मामलों पर विरोध करूंगा , जांच प्रक्रिया पूरी ईमानदारी व निष्पक्ष रूप से होनी चाहिए। सम्बंधित अधिकारियों से ऐसे मामले पर तुरंत कारवाई करनी चाहिए।