पाठकों को बांधे रखने में सक्षम हैं सुस्मिता की कहानियां
लोकार्पण समारोह में कथा लेखिका सुस्मिता पाठक एवं झारखंड मैथिली मंच के सचिव वैद्यनाथ झा एवं कोषाध्यक्ष के के झा सहित अनेक गणमान्य साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। अंत में झारखंड मैथिली मंच के सचिव वैद्यनाथ झा ने सबका धन्यवाद ज्ञापन किया।
मैथिली कहानियों की अनुदित पुस्तक 'कथावाचक' का विद्यापति दलान पर लोकार्पण
Ranchi: मैथिली की सुपरिचित कथा लेखिका सुस्मिता पाठक की का बुधवार को रांची के हरमू स्थित झारखंड मैथिली मंच के विद्यापति दलान पर लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं लहरि पत्रिका के संपादक नरेंद्र ने कहा कि सुस्मिता पाठक की कहानियों में मैथिल स्त्रियों के दारुण जीवन और सामाजिक विडंबना का आख्यान प्रमुखता से रेखांकित हुआ है। उन्होंने अपनी कहानियों में मिथिला की स्त्रियों के दुख-दैन्य का जितनी संवेदनशीलता से रेखांकन किया है, वह पाठकों को झकझोर कर रख देता है।
सुप्रसिद्ध चिंतक, साहित्यकार और राँची दूरदर्शन के पूर्व केंद्र निदेशक प्रमोद झा ने कहा कि सुस्मिता जिस संवेदना के साथ पीड़ित स्त्रियों की वेदना को अपनी कथावस्तु बनाती हैं, उनकी घनीभूत पीड़ा को जिस संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त करती हैं, उससे पाठक सहज ही कथा प्रवाह में बहने लगता है। कथा के पात्रों के साथ पाठकों का यह जुड़ाव सुस्मिता के कथाकार को विशिष्ट बनाता है।
कवि कृष्णमोहन झा मोहन ने कहा कि सुस्मिता की कहानियां पढ़ते वक्त ऐसे पात्रों से साक्षात्कार होता है, जिनकी जिंदगी में कभी उम्मीद की छोटी-सी किरण भी नहीं आई। सुस्मिता अपनी कहानियों में बहुत कलात्मकता के साथ उनके सुख-दुख का रूपांतरण करने में सक्षम हैं।
कथाकार और रांची स्थित राज्य पुस्तकालय के पूर्व अधिकारी अमरनाथ झा ने कहा कि उनके इस संग्रह की कई कहानियां याद रखने लायक हैं। यथार्थ और स्मृतियों के मेल से रची ये कहानियां पात्रों के संघर्ष और उनके बदलते-निखरते व्यक्तित्व से परिचित कराती हैं और पाठकों को एक ऐसा रचनात्मक आस्वाद प्रदान करती हैं, जो उन्हें कथा प्रवाह से बांधे रखता है। सुस्मिता ने अपने लेखन के जरिये मैथिली साहित्य में स्त्री विमर्श को आगे बढ़ाया है और वह महिला लेखन को विशिष्ट ऊंचाई पर पहुंचा रही हैं।
कवि, कथाकार एवं संपादक केदार कानन ने कहा कि सुस्मिता की कहानियों के किरदारों, खासकर स्त्री पात्रों का दुख जितना वर्तमान का दुख है, उतना ही परंपरा के रूप में अतीत का दुख है, लेकिन सुखद है कि उनके पात्रों का दृष्टिकोण भविष्य की ओर है। उनके स्त्री पात्र पुरुषों के सामाजिक वर्चस्व को प्रश्नांकित करते हैं, और जर्जर परंपरा के बोझ को उतार फेंकना चाहते हैं।